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Hartalika Teej 2023: आखिर क्यों रखा जाता है हरतालिका तीज का व्रत, जानिए इसके पीछे की कहानी

Hartalika Teej Vrat 2023 हिन्दू पंचांग के अनुसार हरतालिका तीज व्रत 18 सितंबर 2023 सोमवार के दिन रखा जाएगा। हरियाली तीज की तरह ही यह व्रत भी माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप हरतालिका तीज की कहानी जानते हैं अगर नहीं तो चलिए पढ़ते हैं इस तीज की कहानी।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Thu, 07 Sep 2023 12:05 PM (IST)
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Hartalika Teej Significance पढ़िए हरतालिका तीज की कहानी।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Hartalika Teej 2023: भारत में हरियाली तीज और कजरी तीज के बाद अब हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाएगा। यह व्रत भी अन्य दोनों व्रत के समान ही महत्व रखता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। हरतालिका तीज व्रत एक कठिन व्रत माना जाता है। इसमें महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं।

हरतालिका तीज की कहानी (Hartalika Teej ki Kahani)

हरतालिका तीज का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। हरियाली तीज और हरतालिका तीज के बीच लगभग एक महीने का अंतर होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह हमेशा भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं। यह देखकर पार्वती की सहेलियां उनका हरण करके उन्हें गहरे जंगलों में ले गईं। हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका अर्थात सखी। इसलिए इस व्रत को हरितालिका तीज कहा जाता है।

क्योंकि पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ करना चाहते थे और माता पार्वती इसके लिए तैयार नहीं थी। पार्वती ने जंगलों में अपनी तपस्या जारी रखी। हरितालिका तीज पर माता पार्वती ने मिट्टी से भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की। माता पार्वती की पूजा से भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने दर्शन कर माता पार्वती को विवाह करने का वचन दिया। कालांतर में माता पार्वती के पिता हिमालय ने भी विवाह की अनुमति दे दी। अतः हरतालिका तीज व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं।

हरतालिका तीज व्रत का महत्व (Hartalika Teej Significance)

हरतालिका तीज व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। साथ ही यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वहीं, कुंवारी कन्याओं द्वारा भी यह व्रत सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'