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आइए जानें, नागपंचमी पर नागों की उत्पप्ति से लेकर उनके पराक्रम के बारे में

इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस दिन सर्पहत्‍या की मनाही है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी के दिन धरती खोदना निषिद्ध है।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Sat, 23 Jul 2016 04:16 PM (IST)

आज नाग पंचमी के अवसर पर जानिए नागों से जुड़ी कई पौराणिक कहानियाँ। इन कहानियों का संबंध महाभारत काल से भी पहले से है। इसलिए इन कहानियों का वर्णन महाभारत के आदि पर्व में किया गया है। इन कहानियों में नागों की उत्पप्ति से लेकर उनके पराक्रम को विस्तार से बताया गया है।

नागों की उत्पत्ति-

दक्ष प्रजापति की दो पुत्रियाँ कद्रू और विनता थी. इन दोनों का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था। एक बार कश्यप मुनि ने अपनी दोनों पत्नियों से प्रसन्न होकर वरदान माँगने को कहा। कद्रू ने अपने पतिदेव से एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की माँ बनने का वरदान माँगा और विनता ने केवल दो पुत्र मांगे जो कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों। कश्यप ऋषि के वरदान से कद्रू ने 1000 अंडे दिए जिससे 1000 सर्पों का जन्म हुआ और विनता ने दो दिए। हमारे पुराणों में कई नागों, खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का वर्णन मिलता है।

शेषनाग-

कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे. शेषनाग, अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि धर्म से विचलित नहीं होगी। ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। साथ ही क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।

वासुकि नाग-

धर्म ग्रंथों के अनुसार वासुकि को नागों का राजा कहा गया है। वासुकि नाग महर्षि कश्यप व कद्रू के ही संतान है. एक बार माता कद्रू क्रोधित होकर नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा. तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। विवाह के पश्चात जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। जिसने सर्प यज्ञ को बंद करवाया।

तक्षक नाग-

महाभारत काल में वर्णन मिलता है कि श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था. जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। नाग तक्षक से बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। फलस्वरूप इस यज्ञ में सर्प आ-आकर गिरने लगे. ब्याकुल होकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया। यज्ञ के ब्राह्मण ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। तब से तक्षक भगवान शिव के गले में लिपटा रहते हैं।

नागपंचमी के दिन धरती खोदना निषिद्ध है

नाग पंचमी पर आमतौर पर पांच पौराणिक नागों की पूजा की जाती है जो क्रमश: अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल हैं। अनंत (शेष) नाग की शय्या पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। वासुकि नाग को मंदराचल से लपेटकर समुद्र-मंथन हुआ था।

पुराणों के अनुसार तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी। नागवंशी कर्कोटक के छल से रुष्ट होकर नारदजी ने उसे शाप दिया था। तब राजा नल ने उसके प्राणों की रक्षा की थी। हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल नाग को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है।

शिव पुराण में कहा गया है कि काल सर्प दोषयुक्त कुंडली वाला व्यक्ति यदि नागपंचमी पर नाग की पूजा करें और शिवजी पर सहस्राभिषेक करें तो सर्वमनोकामना सिद्धि प्राप्त होती है।

इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस दिन सर्पहत्या की मनाही है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी के दिन धरती खोदना निषिद्ध है।