Hindu Nav Varsh 2024: इस दिन से शुरू होगा विक्रम संवत 2081, जानें नवसंवत्सर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
हिंदी कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह की प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। इस बार हिंदू नववर्ष 09 अप्रैल 2024 से शुरू हो रहा है। ज्योतिषियों की मानें तो हिंदू नववर्ष बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह वर्ष विशेष है। इसलिए कि भगवान श्रीरामलला पांच शताब्दी के बाद अपने नव्य-भव्य धाम में हैं। चलिए इस आर्टिकल में जानते हैं हिंदू नववर्ष से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
Hindu Nav Varsh 2024: धरती से लेकर गगन तक, चहुंओर नव पल्लव की सुगंध फैल रही है। प्रकृति की प्रसन्नता बूटे-बूटे में फैली है और मन उत्सुकता भरी प्रतीक्षा में घिरा हुआ है। आने वाला है नवसंवत्सर यानी विक्रम संवत 2081, जिसके स्वागत के साथ ही आने वाली है वह घड़ी, जब अयोध्या में विराजे सूर्यवंशी रामलला का सूर्य तिलक होगा। चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा (नौ अप्रैल) के साथ ही आरंभ हो जाएगा पर्वों का मास। काल गणना में सबसे आगे हमारे विक्रम संवत और चैत्र मास की अद्भुत व्याख्या करता पवन तिवारी का आलेख...
खेत-खलिहानों ने मानो सुनहरे वस्त्र धारण कर लिए हैं। आंगन-ओसारे नवधान्य से आच्छादित होने को उतावले हैं। प्रकृति ने कैसा अद्भुत शृंगार रचाया है। आम के बौर प्रौढ़ हो टिकोरे का आकार ले रहे हैं। सेमल के पुष्पों ने धरा पर जैसे मनभावन रंगोली बना दी है। हवा कैसी मंद-सुगंधित है! यह तैयारी है नववर्ष यानी नवसंवत्सर विक्रम संवत 2081 के स्वागत की। यह वर्ष विशेष है। इसलिए कि भगवान श्रीरामलला पांच शताब्दी के बाद अपने नव्य-भव्य धाम में हैं। यह नया प्रात: है, नव प्रभात है। रामलला के साथ ही संपूर्ण सनातन आस्था में उत्साह, उमंग, नव्यता प्राण-प्रतिष्ठित है। यह नूतन वर्ष सनातन गौरव की पुनर्स्थापना का वर्ष सिद्ध हो, ऐसी कामना कर लोग चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा (नौ अप्रैल) के स्वागत की आकुल प्रतीक्षा में हैं। दिवस होगा मंगलवार। सब मंगलमय हो।
अखिल विश्व की यह कामना है। बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत एक मित्र के वाट्सएप की डीपी में उनके चित्र के साथ मेज पर धर्म पताका लगी दिख रही है। मेरा प्रश्न था कि रामोत्सव का रंग अभी यथावत है? वह कहते हैं- प्रण लिया है कि सनातन गौरव के प्रतीक को अयोध्या धाम में अर्पित करेंगे या फिर कम से कम नवसंवत्सर तक मेरे समक्ष यह ध्वजा स्वाभिमान का भान कराती रहेगी। यह संकल्प अधिसंख्य सनातनधर्मियों की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। रामलला के दर्शन की लालसा में उनके दरबार पहुंचने वालों की संख्या ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं। नवसंवत्सर और श्रीरामनवमी पर सबकी चिंता और चुनौती यही है कि आखिर जनज्वार का नियंत्रण और उनके लिए सुविधा-प्रबंधन कैसे संभव हो सकेगा।
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अनुमान है कि श्रीराम जन्मोत्सव श्रीरामनवमी पर 50 लाख श्रद्धालु रहेंगे। अभी यह संख्या कम से कम पांच लाख है। भक्तों के लिए बनाए गए चौड़े पथ उनकी संख्या के आगे संकरे पड़ रहे हैं। नवसंवत्सर पर विशिष्ट पूजन-अर्चना की तैयारी है। श्रीरामनवमी को एक और अद्भुत उपक्रम होगा। इस पावन दिवस पर सूर्यदेव रामलला का अभिषेक करेंगे। वहां उपस्थित भक्तों का अपार जनसमूह इस अनमोल पल और भगवान के सूर्य तिलक के साक्षी बनेंगे। भव्य प्रासाद में विराजित होने के बाद इस वर्ष शुभारंभ के साथ रामलला के जन्म की पावन तिथि पर प्रति वर्ष श्रीराम का सूर्य तिलक होगा। अयोध्या के रामकोट (रामजन्मभूमि मंदिर परिसर का क्षेत्र) में नवसंवत्सर के प्रथम दिवस होने वाली परिक्रमा की अयोध्या के संत और गृहस्थ वर्ष भर प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह वृहद आयोजन श्री विक्रमादित्य महोत्सव न्यास करता है।
शुभ मुहूर्त और पर्वों का मास चैत्र मास शुभ मुहूर्तों और पर्वों का मास है। एक-दो नहीं, अगणित। ब्रह्मा जी ने संपूर्ण सृष्टि का सृजन चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के सूर्योदय से किया था। पांडु पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिवस पर हुआ। विक्रम संवत का नामकरण सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर हुआ। उन्होंने उज्जयिनी में शकों पर अपनी विजय के उपलक्ष्य पर इस संवत का नामकरण किया। नौ देवियों की उपासना के नौ दिवसों का शुभारंभ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही होता है। चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ही नववर्ष का प्रथम दिवस क्यों मानते हैं? इसका उत्तर बड़ा ही रोचक और सैद्धांतिक है। कृष्ण पक्ष के आरंभ में मलमास आने की संभावना रहती है। कहते हैं कि शुक्ल पक्ष में ऐसा नहीं होता। इसके अलावा सृष्टि के निर्माण के समय ब्रह्मा जी ने इस तिथि को प्रवरा अर्थात सर्वोत्तम माना था।
चैत्र मास प्रकृति के लिए भी विशेष होता है, जब प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है। पुष्पों, पल्लवों, फलों से वृक्ष आच्छादित रहते हैं। गेहूं की फसल पककर तैयार हो जाती है। किसान कटाई-पिटाई कर नवान्न का भंडार अपनी देहरी पर लाते हैं। उनका मन आह्लादित हो उठता है। नववर्ष के स्वागत के लिए इससे उपयुक्त मास भला और क्या हो सकता है।
स्वागत के ढंग, विविध रंग
नवरात्र के प्रथम दिवस घर-घर में कलश-पूजन होता है। धूप-दीप-होम से वातावरण सुगंधित हो जाता है। यज्ञोपवीतधारी नया जनेऊ धारण करते हैं। महाराष्ट्र, गोवा में गुड़ी पड़वा की धूम होती है। गुड़ी का अर्थ है ध्वजा। प्रतिपदा को आम बोलचाल में पड़वा कहते हैं। महिलाएं घर पर ध्वजा लगाकर द्वार को रंगोली से सजाती हैं। श्रीखंड, खीर, पूरनपोली जैसे पकवानों का भोग लगाया जाता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में नव वर्ष को उगादी पर्व के रूप में मनाते हैं। कश्मीर में नवरेह तो सिंधी समुदाय इस दिन चेटीचंड महोत्सव का आयोजन करता है। लखनऊ, गोमतीनगर में अयप्पा मंदिर के संस्थापक सदस्य और सनातन धर्म प्रचारक केकेजे नांबियार नव संवत्सर की शुभकामना और स्वागत को सिर्फ वाट्सएप संदेशों तक सीमित रहने देने के पुरजोर विरोधी हैं। वे जोर देते हैं कि हम अपनी नई पीढ़ी को अपने नवसंवत्सर के महत्व से अवश्य अवगत कराएं। घर को सजाएं-संवारें, दरवाजे पर स्वास्तिक बनाएं, ऊं व शुभ-लाभ लिखें और रंगोली भी रचें। इतना ही नहीं, हम कम से एक निर्धन परिवार के मुखमंडल पर खुशी लाने का संकल्प लें। सच्चे अर्थों में नववर्ष का आयोजन तभी सफल माना जाएगा।
समय से आगे गणनाभारत की काल गणना प्रामाणिक और शोधपूर्ण है। सनातन के सांस्कृतिक प्रतीकों में से हमारा एक पुरातन प्रतीक है नवसंवत्सर। यह अपने आप में बहुत बड़ा मंगल मुहूर्त है। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित विस्तार से समझाते हैं- ऋग्वेद के 10वें मंडल के अंतिम श्लोकों में बताया गया है कि अंधकारपूर्ण जल से संवत्सर का उदय हुआ। संवत्सर यूरोप से आए न्यू ईयर जैसा कोई साधारण काल गणना का परिणाम नहीं है। उनके महीनों पर गौर नहीं किया। जैसे सितंबर शब्द लैटिन से बना है। इसका अर्थ है सातवां। ऐसे ही आक्ट (अक्टूबर) है आठवां, और नवंबर है नवां। पहले अंग्रेजी वर्ष में 10 महीने ही थे। बाद में दो और जोड़ दिए गए, इसलिए महीनों का क्रम बिगड़ गया यानी यह साधारण काल्पनिक गणना से बना। इसके विपरीत भारतीय काल गणना के मापन को आश्चर्यपूर्वक देखा गया। पलक झपकिए तो सबसे छोटा खंड है पल। उससे छोटा विपल। वैदिक साहित्य में ऐसे छोटे-छोटे कालखंड की गणना हुई है।
यह सृष्टि सृजन का उत्सव हैवैदिक काल में लिखे गए शतपथ ब्राह्मण में भारत की काल गणना विस्तार से दी गई है। इसके अतिरिक्त चारों युगों की वर्षानुवर्ष गणना की गई है। हम नव संवत्सर को अंतरराष्ट्रीय नव वर्ष बनाएं। यह किसी देश का नव वर्ष न हो। यह सृष्टि सृजन का उत्सव है। हमारे पूर्वजों ने इसकी खोज की, इसका शोध किया, इसलिए इसे पूरे उत्साह से मनाया जाना चाहिए। अंग्रेजी नव वर्ष से हमारी शत्रुता नहीं है, लेकिन हिंदी नव वर्ष की वैश्विकता, सार्वभौमिकता की हम उपेक्षा नहीं कर सकते। हम लोगों को पूरे उत्साह के साथ नव संवत्सर का स्वागत, उपासन, नीराजन, पूजार्चन करना चाहिए।
58 वर्ष आगे है विक्रम संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से। यानी पूरे विश्व में जब वर्ष 2024 ईस्वी चल रहा है, तब हमारे सनातन कैलेंडर में वर्ष 2081 है। यानी एक पीढ़ी आगे।यह भी पढ़ें: Hindu New Year 2024: हवन के साथ करें हिंदू नववर्ष की शुरुआत, जानें विधि और सामग्री लिस्ट