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Bhojan Mantra: भोजन करने से पहले मंत्र बोलना क्यों है जरूरी? जानिए शास्त्रों के अनुसार इसका महत्व

Bhojan Mantra भारतीय परंपरा के अनुसार भोजन करने से पहले और बाद के कुछ नियमों के बारे में बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार भोजन करने के पहले और बाद में मंत्र बोलना जरूरी है क्योंकि तभी भोजन शरीर व स्वास्थ्य के लिए हितकारी होता है। आइए जानते हैं कि कौन-सा मंत्र बोलने से लाभ मिलता है और यह क्यों जरूरी है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Fri, 30 Jun 2023 12:57 PM (IST)
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Bhojan Mantra भोजन से पहले कौन-सा मंत्र बोलना चाहिए।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bhojan Mantra: हिंदू धर्म में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के नियम बताए गए हैं। इन नियमों के पालन से व्यक्ति सदा सुखी रहता है। इसी प्रकार हिंदू शास्त्रों में भोजन संबंधी नियमों का भी वर्णन है। इन्हीं में से एक नियम है भोजन से पहले मंत्र बोलने का नियम।

क्यों जरूरी है मंत्र

शास्त्रों के अनुसार, अन्न में मां अन्नपूर्णा का वास माना गया है। इसलिए भोजन करने से पहले मां अन्नपूर्णा को प्रणाम करना चाहिए साथ ही उन्हें भोजन के लिए धन्यवाद भी देना चाहिए। ऐसा करने से हम उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। इसलिए भोजन करने के पहले और बाद मंत्र जरूर बोलना जरूरी माना गया है।

शास्त्र में मंत्रों का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, भोजन करने से पहले और भोजन करने के बाद भोजन मंत्र का उच्चारण कनरा अत्यंत शुभ माना गया है। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन मंत्र शरीर को सभी प्रकार की ऊर्जाओं से युक्त बनाता है। यदि भोजन विधि विधान से किया जाए और इससे पूर्व भोजन मंत्र का उच्चारण किया जाए तो इसका फल कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। भोजन करने से पूर्व हाथ पैर धोकर मुंह को अच्छे से साफ करें और भोजन मंत्र का उच्चारण करें।

भोजन से पहले बोलें ये मंत्र

ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।

ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।

भोजन के बाद बोले ये मंत्र

भोजन ने के बाद बोलें ये मंत्र

अगस्त्यम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।

भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं ।।

अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।

यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

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