जानिए किस तरह एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर है हिंदू रीति-रिवाजों के महत्वपूर्ण अंग?
हिन्दू धर्म में विविद परंपराएं हैं जिनका पालन नियमित रूप से किया जाता है। लेकिन कुछ ऐसी भी क्रियाएं जिनके पीछे न केवल अध्यात्मिक महत्व है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी इन्हें बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम कुछ ऐसे ही विषय पर बात करेंगे औए जानेंगे कि कैसे एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर है हिंदू रीति-रिवाजों का महत्वपूर्ण अंग है।
By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Thu, 06 Jul 2023 02:30 PM (IST)
नई दिल्ली; सनातन धर्म में विविध परंपराएं हैं, जिनका पालन नियमित रूप से किया जाता है। कुछ परंपराओं के पीछे आध्यात्मिक कारण है और कुछ ऐसे भी परंपराएं हैं जिनके पीछे वैज्ञानिक कारण भी छुपे हुए हैं। इसे साथ भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसी परंपराएं हैं जिनका सीधा संबंध एक्यूपंचर और एक्यूप्रेशर से है। बता दें कि एक्यूप्रेशर वह पद्धति है जो प्राचीन काल से भारतीय चिकित्सा में उपयोग की जा रही है। इसके कारण शरीर में होने वाली कई प्रकार की बीमारियां दूर रहती है और इससे मानव शरीर में ऊर्जा के स्रोत में वृद्धि होती है। आज हम कुछ ऐसे ही परंपराओं के विषय में बात करेंगे, जिनके पीछे यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति छिपी हुई है।
हाथ जोड़कर आदर देने की परंपरा
हाथ जोड़कर किसी को सम्मान देने की परंपरा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके पीछे न केवल आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हुए हैं। बता दें कि दोनों हथेलियों में कुछ ऐसे बिंदु होते हैं, जिनका सीधा संबंध आंख, नाक, कान, हृदय इत्यादि से होता है। जब इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है तब शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति कई प्रकार की बीमारियों से दूर रहता है। यह एक्यूप्रेशर का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
तिलक लगाने की परंपरा
व्यक्ति के मस्तिष्क के जिस स्थान पर तिलक लगाई जाती है। वहां कुछ महत्वपूर्ण तंत्रिकाएं होती हैं। ऐसे में उस जगह पर दबाव पड़ने से वह तंत्रिका शांत रहती है और इससे सिर दर्द, तनाव इत्यादि जैसे गंभीर समस्याएं दूर रहते हैं। साथ ही कुछ आयुर्वेद जानकर यह भी बताते हैं कि बुखार के दौरान ललाट पर चंदन का तिलक लगाने से व्यक्ति के शरीर का तापमान कम रहता है। तिलक लगाना भी एक्यूप्रेशर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।यह भी पढ़ें: कितने प्रकार के होते हैं तिलक और क्या है इनका आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व?
खड़ाऊ पहनने की परंपरा
प्राचीन समय से ऋषि मुनियों द्वारा खड़ाऊ धारण किया जाता है। इसका वर्णन रामायण एवं महाभारत में भी किया गया है। खड़ाऊ एक प्रकार का लकड़ी से बना चप्पल होता है, जिसे पहनने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। बता दें कि खड़ाऊ पहनने से शरीर में रक्त संचार सुचारू रहता है और इससे मानसिक व शारीरिक थकान दूर हो जाता है। इसके साथ खड़ाऊ धारण करने से पैरों की मांसपेशियां मजबूत रहती है और रीड की हड्डी भी सीधी रहती है।कलाई पर मौली बांधने की परंपरा
किसी भी मांगलिक कार्य में कलाई पर मौली या कलावा अवश्य बांधा जाता है। इसके पीछे न केवल आध्यात्मिक कारण छिपा हुआ है, बल्कि वैज्ञानिक महत्व बताए गए हैं। कलावा पहनने से स्वास्थ्य को विशेष लाभ मिलता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि कलावा पहनने से त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ नियंत्रित रहता है। साथ ही हृदय रोग, रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारियां भी बहुत हद तक दूर रहती है।