Mangalsutra: सुहाग की निशानी है मंगलसूत्र, जानें कब और कहां से हुई इसे पहनने की शुरुआत
मंगलसूत्र को सुहाग की निशानी और शादी का प्रतीक माना जाता है। आखिर यही वजह है कि महिलाएं शादी के बाद मंगलसूत्र धारण करती हैं। ऐसा माना जाता है कि मंगलसूत्र पहनने से दांपत्य जीवन सदैव सुरक्षित और सुखमय रहता है।शास्त्रों के अनुसार मंगलसूत्र को विवाह का प्रतीक माना जाता है। इसलिए विवाह के बाद सुहागिन महिलाएं मंगलसूत्र धारण करती हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। History of Mangalsutra: सनातन धर्म में मंगलसूत्र पहनने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। मंगलसूत्र को सुहाग की निशानी और शादी का प्रतीक माना जाता है। आखिर यही वजह है कि महिलाएं शादी के बाद मंगलसूत्र धारण करती हैं। ऐसा माना जाता है कि मंगलसूत्र पहनने से दांपत्य जीवन सदैव सुरक्षित और सुखमय रहता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मंगलसूत्र पहनने की परंपरा कहां से शुरू हुई। यदि आपको इस बारे में जानकारी नहीं है, तो आइए इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे मंगलसूत्र के इतिहास और इससे मिलने वाले लाभ के बारे में।
कब और कहां से हुई शुरुआत?
शास्त्रों के अनुसार, मंगलसूत्र को विवाह का प्रतीक माना जाता है। इसलिए विवाह के बाद सुहागिन महिलाएं मंगलसूत्र धारण करती हैं। इतिहासकारों की मानें तो छठी शताब्दी में मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत हुई थी। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मंगलसूत्र के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ऐसा बताया जाता है कि मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण भारत से हुई थी। इसके पश्चात बदलते समय के अनुसार भारत समेत अन्य देशों में भी इस परंपरा की शुरुआत हुई।
मिलते हैं ये फायदे
- अगर कोई सुहागिन महिला मंगलसूत्र पहनती है, तो उसे वैवाहिक जीवन में शुभ परिणाम की प्राप्ति होती है और हेल्थ के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है।
- मंगलसूत्र धारण करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- मंगलसूत्र 9 मनके से बना होता है, जिनको माता रानी के 9 स्वरूपों का प्रतीक माना गया है। इसी वजह से मंगलसूत्र पहनने से सुहागिन महिलाएं जीवन में सदैव ऊर्जावान बनी रहती हैं। इसके अलावा बुरी नजर भी बचाव होता है।
- मंगलसूत्र पहनने से सुहागिन महिलाओं का शरीर शुद्ध होता है।