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Holi 2024: होली पर करें इस स्तोत्र का पाठ, प्रसन्न होंगे भगवान कृष्ण

होली का दिन राधा रानी और भगवान कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है जो लोग इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा करते हैं उनके रिश्ते में मधुरता आती है। साथ ही उनका जीवन खुशियों से भरा रहता है। इसके साथ ही इस दिन राधा-कृष्ण स्तोत्र व अष्टकम का पाठ करना भी अच्छा माना जाता है तो चलिए यहां करते हैं -

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 25 Mar 2024 07:00 AM (IST)
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Holi 2024: राधा-कृष्ण स्तोत्र व अष्टकम का पाठ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Holi 2024: हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक होली है। इस साल होली का पर्व 25 मार्च, 2024 यानी आज मनाया जा रहा है। यह दिन राधा रानी और भगवान कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन लोग विभिन्न प्रकार की धार्मिक विधियां करते हैं, जिनसे जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलता है।ऐसा कहा जाता है जो साधक इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा करते हैं उनके रिश्ते में मधुरता आती है।

साथ ही उनका जीवन खुशियों से भरा रहता है। इसके साथ ही इस दिन राधा-कृष्ण स्तोत्र व अष्टकम का पाठ करना भी अच्छा माना जाता है। तो आइए यहां करते हैं -

॥श्री राधा कृष्ण अष्टकम॥

चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं ।

हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं ॥

भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं ।

मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं ॥

सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं ।

वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं ॥

मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं ।

नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं ॥

प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं ।

सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं ॥

दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं ।

इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं ॥

मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं ।

धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं ॥

सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं ।

श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं ॥

॥श्री राधा कृष्ण स्तोत्र॥

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।

सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।

तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥

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