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Shani Puja: शनि की ढैया और साढ़ेसाती से हैं परेशान, तो करें बप्पा के साथ शनि देव की पूजा

शनिवार का दिन भगवान शनि को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस पवित्र दिन जो साधक उनकी पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन उपवास का पालन करते हैं उनके सभी कार्य सफल होते हैं। इसके साथ ही कुंडली से शनि का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इसलिए कहा जाता है कि शनिवार के दिन पीपल वृक्ष के सामने दीया जरूर जलाएं।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 07 Sep 2024 02:48 PM (IST)
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Shani Puja: शनि कवच का पाठ ऐसे करें।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा का महत्व है, लेकिन गणेशोत्सव (Ganesh Chaturthi 2024)की वजह से इस दिन का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र दिन पर भगवान गणेश की पूजा शनि देव (Shani Puja) के साथ करने से सौगुना फल की प्राप्ति होती है। साथ ही शनि की ढैया और साढ़ेसाती के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। अगर आप शनि देव की कृपा की कामना करते हैं, तो आज शाम के वक्त आप शनि मंदिर जाएं, वहां जाकर पहले बप्पा के किसी भी वैदिक मंत्रों का जाप करें। फिर

पीपल के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शनि देव की प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं। इसके अलावा शनि कवच का पाठ करें। ऐसा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी। इसके साथ ही कुंडली से शनि का बुरा प्रभाव भी कम होगा।

।।शनि कवच।।

विनियोग - अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।