किसी भी हिन्दू धार्मिक कार्यों में ललाट पर तिलक जरूर लगाया जाता है। बता दें कि तिलक लगाने के पीछे न केवल अध्यात्मिक महत्व छिपा हुआ है बल्कि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी आयुर्वेद में और वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया है। आज हम कुछ ऐसी विषय पर बात करेंगे और जानेंगे कितने प्रकार के होते हैं तिलक और क्या है इनका आध्यात्मिक महत्व।
By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Fri, 30 Jun 2023 04:41 PM (IST)
नई दिल्ली; भारत में, विशेष रूप से हिंदू संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा प्राचीन कल से चली आ रही है। किसी भी आध्यात्मिक कार्य को प्रारंभ करने से पहले तिलक लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि भृकुटी पर यानी माथे के मध्य भाग में तिलक लगाने से एकाग्रता, संयम, आत्म शक्ति में वृद्धि होती है। लेकिन तिलक के भी कई प्रकार होते हैं। वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों आंखों के बीच में आज्ञा चक्र होता है। इस स्थान पर तिलक लगाने से एकाग्रता में वृद्धि होती है। साथ ही अंगूठे या उंगली से इस जगह पर जब दबाव पड़ता है तब माथे तक जाने वाली नसों में रक्त संचार का प्रवाह सामान्य रहता है। हिंदू धर्म में विशेष रूप से कुमकुम, चंदन, हल्दी, भस्म या माटी से तिलक लगाया जाता है।
तिलक का वास्तविक अर्थ पूजा के समय माथे पर लगाए जाने वाला शुभ चिन्ह होता है। शास्त्रों के अनुसार, जो द्विज यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तिलक नहीं लगाते हैं, उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक श्लोक के माध्यम से हम इसे समझ सकते हैं कि "स्नाने दाने जपे होमो, देवता पितृकर्म च। तत्सर्वं निष्फलं यांति ललाटे तिलकं विना।।" जिसका अर्थ है कि तिलक के बिना स्नान, जप, दान, यज्ञ, पितरों का श्राद्ध और देवताओं की पूजा इत्यादि सभी निष्फल हो जाते हैं।
कितने प्रकार के होते हैं तिलक?
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हिंदू धर्म में तिलक लगाने की कई प्रकार है। तिलक के प्रकार पंथ और संप्रदाय के अनुरूप भिन्न हो जाता है। सनातन धर्म में मुख्य रूप से शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य प्रमुख संप्रदाय हैं, जो तिलक लगाते हैं। बता दें कि शैव संप्रदाय के लोग ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाते हैं। वही शाक्त संप्रदाय के लोग सिंदूर से तिलक लगाते हैं। इसे उग्रता का प्रतीक भी माना जाता है, जिससे साधक की शक्ति व तेज में वृद्धि होती है।
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वैष्णव संप्रदाय में 64 प्रकार से तिलक लगाया जाता है। इनमें से प्रमुख श्री तिलक है इसमें चंदन के तिलक के बीच कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनती है। वहीं श्याम श्री तिलक। श्री कृष्ण के उपासक धारण करते हैं। इसमें चंदन के बीच काले रंग की मोटी रेखा होती है।
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इसके साथ-साथ विष्णुस्वामी तिलक और रामानंद तिलक भी प्रमुख रूप से लगाया जाता है। विष्णु स्वामी तिलक दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनती है यह तिलक दोनों भौहों के बीच तक लगाया जाता है। वही रामानंद तिलक धारण करते समय विष्णु स्वामी तिलक के बीच में कुमकुम की खड़ी रेखा खींची जाती है। इसके साथ साथ गणपत्य, तांत्रिक, कापालिक इत्यादि भी तिलक के कई प्रकार हैं। जो विभिन्न साधु-संतों व सन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है।
किन-किन चीजों से लगाया जाता है तिलक?
हिंदू धर्म में विशेष रूप से चार चीजों से तिलक लगाया जाता है। इनमें शामिल है कुमकुम, केसर, चंदन और भस्म। कुमकुम हल्दी, चूना इत्यादि मिलाकर बनता है। इसे लगाने से आज्ञा चक्र की शुद्धि होती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। केसर का तिलक लगाने से मस्तिष्क को शीतलता प्राप्त होती है। वहीं चंदन का तिलक दिमाग को शीतलता प्रदान करता है और मानसिक शांति बनी रहती है। इसके साथ भस्म का तिलक लगाने से मस्तिष्क विषाणुओं से मुक्त रहता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
तिलक लगाने के लिए उंगलियों का क्या है विशेष महत्व?
बता दें कि तिलक लगाने के लिए भी कुछ नियमों का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। जिनका अपना-अपना महत्व है। इस में से प्रत्येक उंगली से तिलक लगाना भी शामिल है। जो व्यक्ति मोक्ष की इच्छा रखते हैं उन्हें अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए। धनवान बनने की इच्छा रखने वाले लोग मध्यमा उंगली से तिलक लगाएं। सुख-शांति की प्राप्ति के लिए अनामिका उंगली का प्रयोग करना चाहिए। देवताओं को मध्यमा उंगली से तिलक लगाना चाहिए। इसके साथ शत्रु के नाश के लिए या उन पर विजय प्राप्त करने के लिए तर्जनी उंगली से ललाट पर तिलक लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है और जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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