Janeu Sanskar: जनेऊ पहनने का हिंदू धर्म में क्या है महत्व, कौन-कौन कर सकता है धारण
हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार का विशेष महत्व है। इसे 24 संस्कारों में से एक माना जाता है। जनेऊ संस्कार 10 साल से कम उम्र के बच्चे का किया जाता है। आइए जानते हैं कि इसे कौन-कौन धारण कर सकता है।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Janeu Sanskar: हिंदू धर्म में जनेऊ धारण करने का विशेष महत्व है। यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहा जाता है। इसे धारण करने के लिए कुछ नियमों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे। प्राचीनकाल से ही हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत संस्कार को प्रमुख संस्कारों में से एक माना जाता है।
क्या होता है जनेऊ
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं। इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है, साथ ही इसे सत्व, रज और तम का भी प्रतीक माना गया है। यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। यज्ञोपवीत के तीन लड़, सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है। ये नौ तार शरीर के नौ द्वार एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं। इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं। यही कारण है कि जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है। इसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियमों का पालन आवश्यक है।
क्यों जरूरी है यज्ञोपवीत संस्कार
बुरे संस्कारों का नाश करके अच्छे संस्कारों को स्थाई बनाने के लिए यज्ञोपवीत-संस्कार किया जाता है। मनु महाराज के अनुसार, यज्ञोपवीत संस्कार हुए बिना द्विज किसी कर्म का अधिकारी नहीं होता। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। ये संस्कार होने के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य करने का अधिकार मिलता है। व्यक्ति को यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त हो जाना ही यज्ञोपवीत है। पदम् पुराण के अनुसार करोड़ों जन्म में किए हुए पाप यज्ञोपवीत धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, आयु, बल, बुद्धि और संपत्ति की वृद्धि के लिए यज्ञोपवीत पहनना जरूरी है। इसे धारण करने से कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।
किन नियमों का ध्यान रखना जरूरी
जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोकर ही इसे कान से उतारना चाहिए। यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाए तो इसे बदल लेना चाहिए। इससे पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। इसे गर्दन में घुमाते हुए ही धो लिया जाता है।
कौन धारण कर सकता है जनेऊ
जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज मन में आती है, वो है धागा, दूसरी चीज है ब्राह्मण। हमें लगता है कि केवल ब्राह्मण जनेऊ धारण कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। हिन्दू धर्म में जनेऊ पहनना, प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य माना जाता है। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था।
क्या महिलाएं भी धारण कर सकती हैं जनेऊ
जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।
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