Janmashtami 2022: जानिए, श्रीकृष्ण के पांचजन्य शंख का रहस्य
Janmashtami 2022 समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इनमें छठा रत्न पांचजन्य शंख है। उस समय भगवान विष्णु ने पांचजन्य शंख को धारण किया था। आसान शब्दों में कहें तो अपने पास रखा था। द्वापर युग में भी पांचजन्य शंख का उल्लेख मिलता है।
Janmashtami 2022: सनातन धार्मिक ग्रंथों में पांचजन्य शंख का उल्लेख है। यह शंख चिरकाल में समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ था। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इनमें छठा रत्न पांचजन्य शंख है। उस समय भगवान विष्णु ने पांचजन्य शंख को धारण किया था। आसान शब्दों में कहें तो अपने पास रखा था। द्वापर युग में भी पांचजन्य शंख का उल्लेख मिलता है।
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम दोनों उज्जैन स्थित ऋषि सांदीपनि के गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा ग्रहण करने के बाद भगवान ने उन्हें गुरु दक्षिणा मांगने को कहा। ऋषि सांदीपनि को पता था कि कृष्ण कोई सामान्य बालक नहीं है, बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने गुरु दक्षिणा में अपने पुत्र की मांग की, जिसकी मृत्यु समुद्र में डूबने से हो गई थी।
यह सुन भगवान श्रीकृष्ण और बलराम दोनों समुद्र के पास जाकर गुरु के पुत्र को लौटने का अनुरोध किया, लेकिन समुद्र देव ने उनकी नहीं सुनी। उस समय बलराम ने क्रोध में समुद्र सुखाने की बात की। यह सुन समुद्रदेव तुरंत प्रकट होकर बोले कि गुरु के पुत्र को शंखासुर ने आहार बना लिया है। उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और बलराम, गुरु के पुत्र को ढूंढने समुद्रतल में गए।
जहां, शंखासुर ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। उस समय दोनों के बीच युद्ध हुई। इस युद्ध में भगवान ने शंखासुर का वध कर दिया और शंख लेकर यमपुरी पहुँच गए। हालांकि, यमपुरी में उन्हें द्वार सेवकों ने अंदर नहीं जाने दिया। तभी भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख बजाया, जिससे यमपुरी में कोलाहल मच गया। यह देख यमराज स्वंय प्रकट होकर गुरु के पुत्र को लौटा कर बोले-हे देव! आप गुरु के पुत्र को ले जा सकते हैं।
इसके बाद सभी गुरु के आश्रम लौट आये। भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख भी ऋषि को लौटा दिए, लेकिन ऋषि सांदीपनि ने पांचजन्य शंख भगवान को भेंट कर दी। उस समय भगवान ने पांचजन्य शंख बजाकर नव युग आरंभ की। पांचजन्य शंख का उल्लेख महाभारत युद्ध में की गई है। ऐसा कहा जाता है कि पांचजन्य शंख की आवाज से पांडवों में उत्साह और कौरवों में कौतहूल मच जाता था।
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