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Janmashtami के शुभ अवसर पर इस तरह प्राप्त करें भगवान श्रीकृष्ण की कृपा, जीवन में नहीं रहेंगे दुख

हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि द्वापर युग में इसी तिथि पर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था जो जगत के पालनहार भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। देशभर में जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में भव्य आयोजन किए जाते हैं। जगह-जगह पर भगवान कृष्ण की झांकियां निकाली जाती हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 14 Aug 2024 06:37 PM (IST)
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Janmashtami 2024 करें भगवान श्रीकृष्ण की चालीसा का पाठ।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि देशभर में जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत भी किया जाता है। ऐसे में आप इस शुभ दिन पर श्री कृष्ण चालीसा का पाठ कर शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। आइए पढ़ते हैं श्रीकृष्ण चालीसा।

जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त (Janmashtami Puja Muhurat)

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 26 अगस्त को रात्रि 03 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 27 अगस्त को रात्रि 02 बजकर 19 पर होगा। ऐसे में जन्माष्टमी का पर्व सोमवार, 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहने वाला है।

श्रीकृष्ण पूजा मुहूर्त - 27 अगस्त रात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक

कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर नाग नथैया।

कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।

आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला।

मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो।

अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा।

सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो।

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।

भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखि प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।

लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये।

भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी।

शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।

डूबत भंवर बचावत नैया॥

सुन्दरदास आस उर धारी।

दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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