Janmashtami 2024: जन्माष्टमी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, धन की मुश्किलें होंगी समाप्त
जन्माष्टमी का पर्व जिसे कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। इस साल यह पर्व 26 अगस्त दिन सोमवार यानी आज मनाया जा रहा है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और सभी पूजा नियमों का पालन करते हैं। वहीं कुछ स्थानों पर इस दिन दही हांडी की परंपरा का भी पालन किया जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जन्माष्टमी का दिन हिंदू धर्म के लिए बेहद खोस होता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी या श्रीजयंती के रूप में जाना जाता है। यह दिन भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। पौराणिक कथाओं और ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, जो श्री हरि के आठवें अवतार हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनकी पूजा से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही परिवार में खुशहाली आती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) 26 अगस्त को यानी आज मनाई जा रही है। वहीं, इस दिन श्री राधा कृष्ण स्तोत्र का पाठ परमकल्याणकारी माना गया है। इसके पाठ से व्यक्ति के जीवन में धन से लेकर कर्ज तक सभी समस्याओं का अंत होता है।
।।श्री राधा कृष्ण स्तोत्र।।
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥
।।श्रीकृष्ण स्तुति।।
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।
कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।
तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।
जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।
कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।
अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।
यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।
दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।
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