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Jaya Parvati Vrat 2024: जया पार्वती व्रत पर करें इस स्तुति का पाठ, प्रसन्न होंगे भगवान शिव

जया पार्वती व्रत बहुत फलदायी माना जाता है। यह हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस साल यह व्रत 19 जुलाई 2024 दिन शुक्रवार यानी आज रखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है। यही नहीं जीवन में खुशहाली आती है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Fri, 19 Jul 2024 02:37 PM (IST)
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Jaya Parvati Vrat 2024: शम्भुं स्तुति और रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जया पार्वती व्रत बेहद शुभ माना जाता है। यह पर्व हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से देवी पार्वती प्रसन्न होती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन सुखी होता है। इसके साथ ही अविवाहित महिलाएं भी मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। इस साल यह पर्व आज यानी 19 जुलाई को मनाया जा रहा है।

इस शुभ अवसर पर यदि ''शम्भुं स्तुति और रुद्राष्टकम स्तोत्र'' का पाठ किया जाए, तो बेहद कल्याणकारी माना जाता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं -

।।शम्भुं स्तुति।।

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं

नमामि सर्वज्ञमपारभावम्।

नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं

नमामि शर्वं शिरसा नमामि॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं

उमापतिं लोकगुरुं नमामि।

नमामि दारिद्रविदारणं तं

नमामि रोगापहरं नमामि॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं

नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।

नमामि विश्वस्थितिकारणं तं

नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं

नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।

नमामि चिद्रूपममेयभावं

त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या

भयंकरं वापि सदा नमामि ।

नमामि दातारमभीप्सितानां

नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं

नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।

नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं

नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं

नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।

यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता

नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं

तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।

आराधितो यश्च ददाति सर्वं

नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं

उमापतिं तं विजयं नमामि ।

नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं

पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोक

विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।

नमामि गंगाधरमीशमीड्यं

उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादि

सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।

नमामि देवीमुखवादनानां

ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः

विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।

अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः

सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

।।रुद्राष्टकम।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।

गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं ।

गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।

मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।

प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

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