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Ravi Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा पूजा का पूरा फल

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को बेहद शुभ माना जाता है। यह दिन भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। वैदिक पंचांग के अनुसार 29 सितंबर यानी आज प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। ऐसे में जब इस व्रत को कुछ ही दिन शेष रह गए हैं तो चलिए इससे जुड़ी कुछ बातों को जानते हैं।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 29 Sep 2024 09:23 AM (IST)
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(Ravi Pradosh Vrat Katha in Hindi: रवि प्रदोष व्रत कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रवि प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन का शास्त्रों में खास महत्व है। इस पवित्र दिन व्रत रखने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही यह तिथि भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा के लिए सबसे उत्तम मानी गई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन शिव पूजन के लिए विशेष होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat 2024) 29 सितंबर, 2024 यानी आज रखा जा रहा है।

ऐसा कहा जाता है कि इसकी व्रत कथा के बिना यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। इसलिए इस दिन प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha 2024) का पाठ जरूर करें, जो इस प्रकार है।

रवि प्रदोष व्रत की कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha in Hindi)

प्रदोष व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक का जिक्र आज हम करेंगे। प्राचीन समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था, जिस वजह से वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन किया करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो नन्हे बालक दुखी अवस्था में मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी।

वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

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तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।