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Sindoor Khela 2024: कैसे हुई सिंदूर खेला की शुरुआत, जानें क्यों मनाया जाता है यह पर्व

शारदीय नवरात्र के 9 दिन मां दुर्गा के 9 स्वरूपों को समर्पित है। धार्मिक मत है कि शारदीय नवरात्र के दौरान मां दुर्गा की पूजा और व्रत करने से घर में खुशियों का आगमन होता है। इस उत्सव की शुरुआत 03 अक्टूबर से हुई है। वहीं इसका समापन 11 अक्टूबर को होगा। मां दुर्गा की विदाई के दिन सिंदूर खेला (Sindoor Khela 2024) का पर्व मनाया जाता है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Sun, 06 Oct 2024 12:41 PM (IST)
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Sindoor Khela 2024: सिंदूर खेला उत्सव का इतिहास
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र का पर्व देशभर में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान अलग ही नजारा देखने को मिलता है। जगह-जगह पर मां दुर्गा के पंडाल लगाएं जाते हैं। उनमे मां दुर्गा की प्रतिमा को विराजमान किया जाता है। इस दौरान विधिपूर्वक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। वैसे तो देशभर में दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाता जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इस उत्सव को अधिक संख्या में लोग मनाते हैं। दुर्गा पूजा के अंतिम दिन सिंदूर खेला की परंपरा निभाई जाती है। यह उत्सव मां दुर्गा की विदाई के दिन मनाया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कैसे हुई सिंदूर खेला (Sindoor Khela 2024) की शुरुआत और आखिर किस वजह से इस उत्सव को मनाया जाता है?  

इस वजह से हुई सिंदूर खेला की शुरुआत

पौराणिक कथा के अनुसार, सिंदूर खेला उत्सव की शुरुआत 450 वर्ष पहले हुई थी, जिसके पश्चात पश्चिम बंगाल में दुर्गा विसर्जन के दिन सिंदूर खेला का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी। बंगाल मान्यताओं के मुताबिक, शारदीय नवरात्र के दौरान मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के अंतिम दिन सिंदूर खेला का पर्व मनाया जाता है। इस उत्सव को सिंदूर उत्सव के नाम से भी जाना जाता है।

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कैसे मनाते हैं सिंदूर खेला?

इस बार सिंदूर खेला का पर्व 13 अक्टूबर (When is Sindoor khela 2024) को है। दुर्गा विसर्जन के दिन आरती के साथ सिंदूर खेला की शुरुआत होती है। इसके बाद लोग मां दुर्गा को भोग अर्पित करते हैं और लोगों में प्रसाद का वितरण किया जाता है। मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि इसमें घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इसके बाद सिंदूर खेला शुरू होता है। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं। इसके बाद दुर्गा विसर्जन किया जाता है।  

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।