Kajari Teej 2024: क्यों मनाई जाती है कजरी तीज, कैसे हुई इसकी शुरुआत?
कजरी तीज का व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है। यह पर्व हर साल सावन मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन लोग शिव-पार्वती की खास पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस उपवास को रखने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही शिव-पार्वती प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वर प्रदान करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल कजरी तीज का पर्व पूरे देश में बहुत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। कजरी तीज का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख- सौभाग्य और समृद्धि प्राप्ति के लिए करती हैं। इसे बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस पावन समय में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल यह व्रत (Kajari Teej 2024) 22 अगस्त को यानी आज रखा जा रहा है, तो आइए इसकी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं।
कजरी तीज क्यों मनाई जाती है?
कजरी तीज का दिन माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन उत्सव का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की आराधना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस शुभ अवसर देवी पार्वती ने अपनी कठोर तपस्या से शिव जी को प्रसन्न कर अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। ऐसा कहा जाता है कि इसका पालन करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।यह भी पढ़ें: Sankashti Chaturthi 2024: हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी आज, प्रिय भोग से लेकर पूजन विधि तक, नोट करें संपूर्ण जानकारी
कजरी तीज व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
कजरी तीज व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक का जिक्र हम करेंगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था, जब भाद्रपद महीने की कजरी तीज आई, तो उस ब्राह्मणी ने इस कठिन व्रत का पालन किया। उस दौरान उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से चने का सत्तू लाने को कहा, 'जिसपर ब्राह्मण ने कहा कि वह सत्तू कहां से लाएगा?' इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि 'उसे सत्तू चाहिए चाहे वह कहीं से भी चोरी या डाका डालकर लाए।'अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए वह गरीब ब्राह्मण घर से निकलकर एक साहूकार की दुकान में घुस गया। इसके बाद उसने उस दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर को सवा किलो तोल लिया। फिर इन सब से सत्तू बना लिया। वहीं, उसके निकलते समय कुछ आवाज को सुनकर साहूकार के सभी नौकर जाग गए और चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगें। इतने में ही वहां पर साहूकार भी आ पहुंचा और उसने उस ब्राह्मण को पकड़ लिया, जिसपर ब्राह्मण ने कहा कि 'वो चोर नहीं है। उसकी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है, जिसके चलते वह यहां पर सिर्फ सवा किलो सत्तू ले जाने आया था।' ब्राह्मण की बात सुनकर साहूकार ने उसकी तलाशी ली और उसके पास से उसे सत्तू के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।
वहीं, चांद निकल गया था और ब्राह्मणी सत्तू का इंतजार कर रही थी। ब्राह्मण के हालात को देखकर साहूकार भावुक हो गया और उसने उससे कहा कि 'आज से वो उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा।' इसके साथ ही उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर दुकान से विदा कर दिया। इस प्रकार ब्राह्मणी ने अपनी पूजा पूर्ण की और ब्राह्मण के दिन सुखमय हो गए। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी के जीवन में सकारात्मक बदलाव होने लगते हैं।
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