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Kalashtami 2024: कालाष्टमी के दिन करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, चंद दिनों में सभी संकटों से मिलेगी निजात

Kalashtami 2024 धार्मिक मत है कि सच्चे दिल से जो कोई भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा-उपासना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होती हैं। साथ ही उसके जीवन में नया सवेरा होता है। शास्त्रों में निहित है कि काल भैरव के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। उनकी कृपा से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 03 Jan 2024 06:28 PM (IST)
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Kalashtami 2024: कालाष्टमी के दिन जरूर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kalashtami 2024: 04 जनवरी को मासिक कालाष्टमी है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन काल भैरव देव की भक्ति साधना की जाती है। धार्मिक मत है कि सच्चे दिल से जो कोई काल भैरव देव की उपासना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होती हैं। साथ ही उसके जीवन में नया सवेरा होता है। शास्त्रों में निहित है कि काल भैरव के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। अगर आप भी काल भैरव की कृपा पाना चाहते हैं, तो कालाष्टमी पर विधि विधान से भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा करते हैं। साथ ही पूजा के समय इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ करें।

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भैरव कवच

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ।

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ॥

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ॥

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ॥

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ॥

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ॥

बटुक भैरव स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।

क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।

श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।

रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।

कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।

त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।

शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।

अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।

धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।

नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।

कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।

त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।

त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।

बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः।।

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।

धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।

प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।

अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।

अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।

भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ।।

कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।

जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ।।

शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।

बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ।।

सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।

कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ।।

जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।

सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ।।

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।

मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम् ।।

य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।

न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ।।

न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।

पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ।।

मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।

औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये ।।

बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।

सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।।

।।क्षमा-प्रार्थना।।

आवाहनङ न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।

पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।

मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।

मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।

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