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कल्कि पुराण के अनुसार कृष्ण जन्म के समान ही भगवान कल्कि जन्म लेंगे

कल्कि पुराण के अनुसार कृष्ण जन्म के समान ही भगवान कल्कि जन्म लेंगे। उनका जन्म शम्भल ग्राम में होगा। इस रूप में कल्किजी के चार हाथ होंगे, लेकिन ब्रह्माजी उसी समय वायु देव के जरिए कल्कि भगवान को यह संदेश भिजावाएंगे कि उन्हें मनुष्य रूप में रहना है।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 16 Dec 2015 05:34 PM (IST)
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कल्कि पुराण के अनुसार कृष्ण जन्म के समान ही भगवान कल्कि जन्म लेंगे। उनका जन्म शम्भल ग्राम में होगा। इस रूप में कल्किजी के चार हाथ होंगे, लेकिन ब्रह्माजी उसी समय वायु देव के जरिए कल्कि भगवान को यह संदेश भिजावाएंगे कि उन्हें मनुष्य रूप में रहना है।

ब्रह्माजी का संदेश पाकर कल्कि भगवान मनुष्य रूप में प्रकट होंगे। यह लीला जब उनके माता-पिता देखेंगे तो वो हैरान हो जाएंगे। उन्हें ऐसा लगेगा कि किसी भ्रम स्वरूप उन्होंने अपने पुत्र को चार भुजा में देखा था। जिस दिन से शम्भल ग्राम में प्रभु जन्म लेंगे, उसी दिन से वहां सब कुछ सुखमय हो जाएगा।

भगवान का यह अवतार 'निष्कलंक भगवान' के नाम से भी जाना जाएगा। श्रीमद्भागवतमहापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि 'सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। वह देवदत्त नाम के घोड़े पर सवार होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।'

भगवान कल्कि के शिशु रूप के दर्शन के लिए परशुराम, कृपाचार्य, वेदव्यास और द्रोणाचार्य जी के पुत्र अश्वत्थामा भिक्षुक के वेश में आएंगे। भगवान कल्कि के तीन भाई होंगे। जो उनके जन्म के पहले जन्म ले चुके होंगे।

उनके नाम क्रमश: कवि, प्राज्ञ और सुमन्त्रक होंगे। भगवान कल्कि के अनुगामी साधु स्वभाव वाले गार्ग्य, भर्ग्य और विशाल आदि भगवान कल्कि के जन्म से पहले ही उनके वंश में जन्म ले चुके होंगे।

कल्कि जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही उनके पिता द्वारा होगी। गुरुकुल में जब वह आगे की शिक्षा प्राप्त करने जाएंगे। तब महेंद्र पर्वत निवासी परशुराम उन्हें अपने आश्रम में ले जाएंगे। वहां पहुंच कर परशुराम अपना परिचय देंगे।

वह कहेंगे कि, 'मैं भृगु वंश में उत्पन्न महर्षि जमदग्नि का पुत्र, वेद वेदांग के तत्व को जानने वाला हूं। मैं धनुर्वेद विद्या विशारद परशुराम हूं। मैने बहुत समय पहले इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था। अब तुम मुझे धर्म पूर्वक गुरु मानो, मैं तुमको भिक्षा दूंगा।'