Kanwar Yatra 2024: कांवड़ियों को रखना होता है इन नियमों का ध्यान, तभी सफल होती है यात्रा
शिव भक्तों को सावन माह का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन पंचांग का पांचवा महीना होता है। यह पूरा महीना मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। सावन में आने की जाने वाली कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कांवड़ यात्रा से जुड़े जरूरी नियम।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कावड़ यात्रा शिव के भक्तों की एक तीर्थ यात्रा है। कांवड़ लाने वाले भक्तों को कांवड़ियों के रूप में जाना जाता है। यह एक कठिन यात्रा होती है, क्योंकि यह पूरी यात्रा पैदल की जाती है। हर साल लाखों कांवड़ियां हरिद्वार से पवित्र गंगाजल लाकर सावन शिवरात्रि पर अपने क्षेत्र के शिवालयों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
इस दिन से हो रही है शुरुआत
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सावन माह शुरू होने के साथ ही कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत हो जाती है। ऐसे में इस साल सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई 2024, सोमवार के दिन से हो रही है। ऐसे में कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी इसी दिन से होगी, जिसका समापन 02 अगस्त 2024 को सावन शिवरात्रि पर होगा।
ऐसे होती है कांवड़ यात्रा
सावन माह की शुरुआत होते ही भक्त अपने-अपने स्थान से उत्तराखंड के हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री आदि स्थानों से गंगा नदी के पवित्र जल को लाने के लिए निकल पड़ते हैं। इसके बाद शिव भक्त गंगातट से कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको अपनी कांवड़ से बांधकर अपने कंधों पर लटका लेते हैं। इसके बाद अपने क्षेत्र के शिवालय में लाकर इस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों में माना गया है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा शुरू की थी।कावड़ यात्रा के नियम
यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन ही करना चाहिए। साथ ही इस दौरान किसी भी प्रकार के नशे, मांस-मदिरा या तामसिक भोजन आदि से दूर रहना चाहिए। इस बात का भी खास ख्याल रखा जाता है कि यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर न रखा जाए। ऐसा होने पर कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में कांवड़िए को फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है।यह भी पढ़ें - Sawan Shivratri 2024: कब मनाई जाएगी सावन शिवरात्रि? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
इन बातों का भी रखें ध्यान
कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल की जाती है, इसके लिए किसी भी तरह के वाहन का प्रयोग नहीं किया जाता। कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही स्पर्श किया जाता है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि यात्रा के समय कांवड़िया से चमड़ा स्पर्श नहीं होना चाहिए और न ही कांवड़ को किसी के ऊपर से ले जाएं। साथ ही भोलेनाथ की कृपा के लिए कांवड़ यात्रा में हर समय शिव जी के नाम का उच्चारण करते रहना चाहिए।
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