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क्यों बचपन में किया जाता है कर्णवेध संस्कार? जानिए इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

हिन्दू धर्म में 16 प्रमुख संस्कारों के विषय में बताया गया है। इनमें से कर्णवेध संस्कार भी एक है जिसका अर्थ बाल्यावस्था में कान छिदवाना भी होता है। बता दें कि कर्णवेध संस्कार के पीछे न केवल अध्यात्मिक महत्व छिपा हुआ है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी दिया जाता है। आज हम जानेंगे की कर्णवेध संस्कार का क्या है महत्व और कैसे यह स्वास्थ्य के लिए है लाभकारी।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sat, 01 Jul 2023 04:45 PM (IST)
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जानिए क्या है कर्णवेध संस्कार का आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व?
नई दिल्ली; सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया है, जिसमें से एक कर्णवेध संस्कार भी है। कर्णवेध का अर्थ करण भेदन या कान छिदवाना होता है। यह कर्म एक बच्चे के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार होता है। इसके पीछे न केवल आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि वैज्ञानिक गुण भी छिपा हुआ है। शास्त्रों में बताया गया है कि शिशु की बौद्धिक विकास और उन्नति के लिए कर्णवेध संस्कार किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कर्णवेध संस्कार से जीवन में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम होता है और कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं

शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि यदि शिशु का जन्म कुमार रूप में यानी लड़के के रूप में होता है तो उपनयन संस्कार से पहले कर्णवेध संस्कार जरूर कराया जाता है। इसके साथ यदि कन्या रूप में होती है तो कान और नाक दोनों में कर्णवेध संस्कार किया जाता है। इसके पीछे आयुर्वेद शास्त्र में भी विस्तार से बताया गया है और यह भी बताया गया है कि इस संस्कार से स्वास्थ्य को कितना लाभ पहुंचता है।

क्या है कर्णवेध संस्कार का आध्यात्मिक महत्व?

मान्यता है कि कर्णवेध संस्कार को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के बीच में किया जाता है। इस संस्कार को करने से मेधा शक्ति की प्राप्ति होती है। साथ ही बालक को उच्च ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है और वह बुद्धिमान होता है। बता दें कि इस संस्कार को जन्म के 12वें या 16वें दिन किया जाता है। किसी कारण से यदि ऐसा ना किया जा सके तो इस संस्कार को जन्म से छठे, सातवें या आठवें माह की अवधि में किया जाता है। यदि यह संस्कार इस समय में भी न हो पाए तो शिशु का तीसरे, पांचवें और सातवें वर्ष की आयु में इस संस्कार को पूर्ण किया जाना जरूरी है।

क्या है कर्णवेध संस्कार का वैज्ञानिक महत्व?

आयुर्वेद शास्त्र में बताया गया है कि कर्ण अर्थात कान के निचले हिस्से जिसे ईयरलोब भी कहते हैं, जब वहां छेद किया जाता है तो दिमाग का महत्वपूर्ण हिस्सा जागरूक हो जाता है। कान के इस हिस्से के आसपास आंखों की नसें भी होती हैं, जिसे दबाने से आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इसलिए जब कान छिदवाया जाता है तो उस बिंदु पर दबाव पड़ने की वजह से मानसिक बीमारी, घबराहट, चिंता इत्यादि जैसी समस्याएं दूर करने में सहायता मिलती है। कन्याओं में ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से उनका मासिक धर्म नियमित रहता है और वह हिस्टीरिया रोग से दूर रहती हैं।

इसके साथ नाक छिदवाने के भी कई फायदे हैं और इस प्राचीन परंपरा का ना केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई समुदायों में पालन किया जाता है। बता दें कि नाक छिदवाने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है और कई प्रकार के रोग दूर रहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नाक के बाएं नथुने में कई नसें होती है जो महिलाओं के प्रजनन अंगों से जुड़ी होती हैं। ऐसा कहा गया है कि नाक छिदवाने से प्रसव के दौरान महिलाओं को आसानी होती है और उस दौरान पीड़ा सहन करने में सहायता मिलती है। इसलिए हिन्दू धर्म में इस संस्कार को प्रमुख संस्कारों में गिना जाता है।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।