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Kawad Yatra 2023: इस तिथि से शुरू हो रही है कावड़ यात्रा, भगवान शिव की भक्ति के लिए मिलेंगे दो महीने

Kawad Yatra 2023 हिन्दू धर्म में भगवान शिव की भक्ति के लिए सावन मास को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन मास में भगवान शिव के भक्त कावड़ यात्रा कर महादेव को गंगाजल अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में कावड़ यात्रा कर भगवान शिव की उपासना करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। जानते हैं कब से शुरू हो रही है कावड़ यात्रा।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Fri, 30 Jun 2023 11:56 AM (IST)
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Kawad Yatra 2023: कब से शुरू हो रही है कावड़ यात्रा?
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Kawad Yatra 2023: सावन का पवित्र महीना शुरू होने जा रहा है। सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव की भक्ति का विशेष महत्व है। बता दें कि सावन शुरू होते ही कावड़ यात्रा का भी शुभारंभ हो जाता है। कावड़ यात्रा में शिवभक्त पैदल और लंबी यात्रा तय कर गंगा नदी का पवित्र जल कावड़ में भरकर लाते हैं और भगवान शिव को अर्पित करते हैं। मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव को जल चढ़ाने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। बता दें कि कावड़ यात्रा को कठिन यात्राओं में गिना जाता है। आइए जानते हैं, कब से शुरू हो रही है कावड़ यात्रा?

कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा 2023?

धार्मिक विद्वानों के अनुसार, कावड़ यात्रा का शुभारंभ सावन के पहले दिन से हो जाता है। बता दें कि इस वर्ष पवित्र सावन महीने का शुभारंभ 04 जुलाई 2023, मंगलवार के दिन से हो रहा है। ऐसे में इसी दिन से कावड़ यात्रा भी शुरू हो जाएगी। वहीं कावड़ यात्रा का समापन 31 अगस्त 2023, गुरुवार के दिन होगा। सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई 2023 के दिन पड़ रहा है।

सावन में कब-कब करें महादेव का जलाभिषेक?

सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई

शिवरात्रि प्रदोष व्रत: 15 जुलाई

सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई

सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई

प्रदोष व्रत: 30 जुलाई

सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई

सावन का पांचवा सोमवार: 07 अगस्त

सावन का छठा सोमवार: 14 अगस्त

सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त

सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त

कौन हैं सबसे पहला कावड़िया?

किंवदंतियों के अनुसार, सबसे पहला का कावड़िया भगवान परशुराम जी को बताया गया है। कथा के अनुसार, एक बार राजा सहस्त्रबाहु परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम आए। तब ऋषि जमदग्नि ने राजा और सेना का सत्कार बड़े ही ठाट-बाट से किया। ऐसा इसलिए क्योंकि ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो हर मनोकामना पूर्ण करती थी। कामधेनु गाय को पाने इच्छा से राजा के मन में लालच उत्पन्न हो गया और उसने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।

पिता की हत्या का बदला लेने के लिए परशुराम जी ने सहस्रबाहु के सभी भुजाओं को काट दिया और उसका वध कर दिया। इसके बाद कठोर तपस्या के बाद उनके पिता को जीवनदान प्राप्त हुआ। लेकिन सहस्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए परशुराम जी ने भगवान शिव का जलाभिषेक किया। उन्होंने मीलों पैदल यात्रा कर, कावड़ में जल भरकर यह कार्य संपन्न किया। तब से अब तक इसी प्रकार कावड़िये लंबी यात्रा कर भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं.

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।