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Khatu Shyam Story: किस स्थान पर मिला था बाबा खाटू श्याम का शीश, जानें कौन हैं हारे का सहारा?

भगवान खाटू श्याम की पूजा बेहद कल्याणकारी मानी गई है। उन्हें लोग हारे का सहारा के नाम से भी जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो जातक उनकी (Khatu Shyam) पूजा-अर्चना भक्ति भाव के साथ करते हैं उनकी हर समस्याओं का अंत तुरंत हो जाता है। साथ ही उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। आज हम उनसे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को साझा करेंगे जो इस प्रकार हैं -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Thu, 01 Feb 2024 12:39 PM (IST)
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Khatu Shyam Story: कहां प्राप्त हुआ था बाबा खाटू श्याम का शीश?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Khatu Shyam Story: भगवान खाटू श्याम को कलयुग (Kalyug) का जाग्रत देवता माना गया है। उनकी पूजा से भक्तों के जीवन का सभी कष्ट क्षण भर में समाप्त हो जाता है। यही वजह है कि उन्हें 'हारे का सहारा' कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक अपनी मां का आशीर्वाद लेकर और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर महाभारत युद्ध में शामिल होने के लिए पहुंचे।

भगवान कृष्ण को उनके आने के बाद युद्ध के अंत की अनुभूति हुई कि अगर कौरव हारते हैं, तो अपनी मां को दिए हुए वचन के चलते बर्बरीक उनका साथ अवश्य देंगे, जिससे पांडवों की हार तय है। इन्हीं कारणों के चलते श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेष धारण कर बर्बरीक से शीश का दान मांगा, लेकिन घटोत्कच्छ पुत्र को इस बात से हैरानी हुई कि आखिर ब्राह्मण को उनका शीश क्यों चाहिए ?

इसी संशय में आकर उन्होंने ब्राह्मण को अपना असली परिचय देने को कहा, तब श्री कृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। इसके बाद बर्बरीक ने उनसे अंत तक महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की और श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर उनका सिर सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया।

कौन हैं बाबा श्याम ?

बर्बरीक जिन्हें आज खाटू श्याम नाम से जाना जाता है वे शक्तिशाली पांडव भीम के पोते और घटोत्कच्छ के पुत्र हैं। बाबा श्याम का संबंध महाभारत काल से है। बर्बरीक के अंदर अपार शक्ति और क्षमता थी, जिससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का आशीर्वाद दिया था।

कहां प्राप्त हुआ था बाबा खाटू श्याम का शीश?

ऐसा कहा जाता है कि खाटू श्याम का शीश राजस्थान के सीकर से प्राप्त हुआ था। उनका शीश प्राप्त होने के बाद लोगों ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया और कार्तिक माह की एकादशी तिथि को उनका शीश उसी मंदिर में स्थापित किया। तभी से भक्त इस दिन बाबा श्याम का जन्मदिन बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं।

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