हवन है यज्ञ का महत्वपूर्ण अंग, जानिए इनका महत्व और अध्यात्मिक व वैज्ञानिक लाभ
Havan or Yajna सनातन धर्म में हवन अथवा यज्ञ का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों में हवन और यज्ञ की विशेषताओं को विस्तार से बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि इनका अध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व क्या है?
By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 05 Jun 2023 04:33 PM (IST)
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क; सनातन परंपरा में हवन अथवा यज्ञ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके बिना अधिकांश मांगलिक कार्य पूर्ण नहीं होते हैं। किसी भी मांगलिक कार्य में शुद्धिकरण और भगवान के आह्वान के लिए हवन या यज्ञ आयोजित किया जाता है। हवन इत्यादि में प्रज्ज्वलित की जाने वाली अग्नि मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व निभाते हैं और इसलिए इन्हें देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हवन या यज्ञ के आयोजन से देवताओं को आहुति प्रदान की जाती है। जिससे वह प्रसन्न होकर साधकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। इसलिए आपने देखा होगा कि किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य जैसे, विवाह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार इत्यादि में हवन जरूर किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हवन और यज्ञ में एक बड़ा अंतर है? जिसे आचार्य श्याम चंद्र मिश्र जी ने बताया है। आइए जानते हैं, क्या है हवन और यज्ञ में अंतर और इनका आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्त्व?
हवन और यज्ञ में क्या है अंतर?
आचार्य श्याम चंद्र मिश्र बताते हैं कि संस्कृत के यज् धातु से यज्ञ शब्द बना है। जिस स्थल पर देवताओं का आह्वान पूजन द्वारा उनको अग्निमुख से वस्तु प्रदान किया जाता है, उसे यज्ञ कहते हैं। यज्ञ के लिए सर्वप्रथम भूमि पूजन करके मंडप का निर्माण किया जाता है। फिर सभी दिशाओं में निर्धारित देवताओं का आवाहन पूजन किया जाता है। फिर अग्निदेव की स्थापना करके वस्तु प्रदान की जाती है उसे हवन कहते हैं। हवन के माध्यम से ही मानव देवताओं को प्रसन्न करते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।शास्त्रों में पांच प्रकार के यज्ञ का वर्णन मिलता है। एक 'ब्रह्म यज्ञ' जिसमें ईश्वर या इष्ट देवताओं की उपासना की जाती है। दूसरा है 'देव यज्ञ' जिसमें देव पूजा और अग्निहोत्र कर्म किया जाता है। तीसरा है 'पितृयज्ञ', जिसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। चौथा है 'वैश्वदेव यज्ञ' जिसमें प्राणियों को अन्न, जल प्रदान किया जाता है और पांचवा है अतिथि यज्ञ जिसमें मेहमानों की सेवा की जाती है। इन सभी में से देव यज्ञ में ही हवन आदि कर्म किए जाते हैं। रामायण तथा महाभारत में भी विशेष यज्ञ का वर्णन मिलता है। जिनमें पुत्रेष्ठी, अश्वमेध, राजसूय आदि यज्ञ राजा एवं देवताओं द्वारा किया जाता था। नवरात्रि के अष्टमी या नवमी तिथि के दिन भी हवन का विशेष महत्त्व है।
हवन अथवा यज्ञ का धार्मिक महत्त्व
हवन और यज्ञ की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है। इसका उल्लेख रामायण एवं महाभारत में भी विस्तार से किया गया है। जब अयोध्या के सम्राट दशरथ को संतान प्राप्त नहीं हो रहे थे, तब उन्होंने इसके लिए पुत्रेष्ठी यज्ञ का आयोजन किया था। रामायण काल में ही भगवान श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ किया था। बता दें कि हवन अथवा यज्ञ में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना की जाती है और उनसे यह प्रार्थना की जाती है और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। हवन इत्यादि करने से देवता भी जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा दृष्टि साधक पर सदैव बनाए रखते हैं।हवन या यज्ञ का क्या है वैज्ञानिक महत्त्व
हवन का न केवल आध्यात्मिक महत्त्व है, बल्कि इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि हवन के प्रयोग होने वाले घी या गुड के जलने से ऑक्सीजन का निर्माण होता है। वहीं हवन का धुंआ वायुमंडल को शुद्ध बनाता है, जिससे करीब 94% हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। फ्रांस के टेरे नामक वैज्ञानिक ने भी हवन पर शोध करते हुए यह बताया था कि आम की लकड़ी से फार्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है, जिससे खतरनाक जीवाणु वातावरण से नष्ट हो जाते हैं।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी हवन पर रिसर्च करते हुए यह पाया कि हवन से निकलने वाले धुएं से वातावरण में मौजूद कई प्रकार के विषाणु नष्ट हो जाते हैं। वहीं सारा धुआं बाहर निकल जाने पर भी 24 घंटे तक जगह वातावरण में शुद्धता बनी रहती है और साफ हवा व्यक्ति को प्राप्त होती है।डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।