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हिन्दू धर्म में क्या है कर्म महत्व और किस तरह पड़ता है इसका जीवन पर प्रभाव?

हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधान माना गया है। शास्त्रों में यह विदित है कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उन्हें उसी प्रकार से फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति के कर्मों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करता है उन्हें सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है और वह कई प्रकार की समस्याओं से दूर रहते हैं।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Wed, 19 Jul 2023 02:57 PM (IST)
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जानिए, क्यों हिन्दू धर्म में कर्म को माना गया है प्रधान?
नई दिल्ली; गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।" जिसका अर्थ है कि 'तेरा कर्म करने में अधिकार है, इनके फलों में नहीं। तू कर्म के फल के प्रति आसक्त ना हो या कर्म न करने के प्रति प्रेरित ना हो।' सनातन धर्म में कर्म को मूल सिद्धांत माना गया है। इसके साथ रामायण, महाभारत जैसे महान ग्रंथों में भी कर्म को ही प्रधान बताया गया है।

माना जाता है कि जो व्यक्ति वेदांत के आधार पर कर्मों का पालन करता है, उसका जीवन नियंत्रित रहता है और वह अनुशासन से पूर्ण रहता है। इसके साथ कर्म का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि भाग्य का योगदान जीवन के अच्छे बुरे परिणामों में अंश मात्र ही होता है। वहीं अच्छा या बुरा कर्म व्यक्ति के भाग्य को निर्धारित करता है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि हिंदू धर्म में कर्म का क्या महत्व है और प्रमुख कर्म कौन-कौन से हैं?

व्यक्ति के जीवन में क्या है कर्म का मोल?

शास्त्र एवं धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। साथ ही यह भी बताया गया है कि जो शास्त्रों में बताए गए सिद्धांतों के अनुरूप कर्म करता है, उन्हें जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। बता दें कि सनातन में 16 प्रमुख संस्कारों का विशेष बताया गया है, लेकिन इनके साथ कुछ विशेष कर्मों के विषय में भी बताया गया है, जिनका पालन व्यक्ति को नियमित रूप से करना चाहिए। ऐसा करने से न केवल आत्मिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

क्या है सनातन धर्म के प्रमुख कर्म

  • धर्म प्रचार- जो लोग जीवन में धर्म के विषय में सही जानकारी रखते हैं, उन्हें अन्य लोगों तक धर्म का प्रचार निश्चित रूप से करना चाहिए। वेद, उपनिषद, गीता के ज्ञान का प्रचार इनमें, सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जो व्यक्ति ज्ञानी होते हुए भी धर्म का प्रचार नहीं करता है, उनका जीवन व्यर्थ हो जाता है। इसलिए धर्म प्रचार को प्रमुख कर्मों में गिना गया है।

  • संध्या वंदन- प्रमुख कर्मों में संध्या वंदन की गणना भी की गई है। जो पूजा संधि काल में की जाती है, उसे ही संध्या वंदन कहा जाता है। संधि आठ वक्त की मानी जाती है। उसमें भी पांच वक्त महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें से भी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की गई पूजा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। इस दौरान व्यक्ति को पूजा-अर्चना, ध्यान, भजन-कीर्तन, आरती इत्यादि अवश्य करना चाहिए।

  • व्रत-त्यौहार का पालन करना- हिंदू पंचांग में 12 माह हैं, जिन्हें- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन नाम से जाना जाता है। इन सभी में श्रावण मास को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। साथ ही प्रत्येक मास में पढ़ने वाली तिथियों का भी विशेष महत्व है। इन सभी में एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा और अमावस्या तिथि को श्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी या चतुर्थी व्रत रखता है, उन्हें जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।

  • दान करना- हिंदू धर्म में दान का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति विशेष अवसर पर या इनके अलावा समय-समय पर दान धर्म करता है, उनके खाते में पुण्य जुड़ता रहता है। इसके साथ मृत्यु के उपरांत उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार भी दान कर सकता है। उसके पास जितना है, उसका कुछ हिस्सा ही दान करने से अक्षयपुण्य की प्राप्ति हो जाती है।

  • सेवाभाव रखना- जो व्यक्ति अपने जीवन में माता-पिता, गुरुजन और बड़े-बुजुर्गों की सेवा करता है। इनके अलावा किसी जरूरतमंद, असहाय महिला, सन्यासी, चिकित्सक या धर्म के रक्षकों की सेवा अथवा सहायता करता है, उसे पुण्य के श्रेणी में गिना जाता है। इसके साथ-साथ पशु-पक्षियों की सेवा को भी विशेष महत्व दिया गया है। इन सभी में गौ सेवा करने से विशेष लाभ मिलता है। कहा गया है कि गौ सेवा करने से मोक्ष धाम के द्वार सदैव के लिए खुल जाते हैं।

  • यज्ञ करना- बता दें कि शास्त्रों में पांच प्रमुख यज्ञ के विषय में बताया गया है जो इस प्रकार हैं- ब्रम्ह यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ। मान्यता है कि इन यज्ञ का पालन करने से देव ऋण, पितृ ऋण, प्रकृति ऋण, मातृ ऋषि और धर्म ऋण यह सभी समाप्त हो जाते हैं। यज्ञ के दौरान किए गए वेद पाठों का भी जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। अग्नि देवता को साक्षी रखकर होम करना अग्निहोत्र यज्ञ की श्रेणी में आता है। ऐसा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और जीवन में आ रही सभी प्रकार की नकारात्मकताएं दूर हो जाती है।

  • प्रायश्चित करना- एक व्यक्ति अज्ञानतावश या अनजाने में कई प्रकार के गलतियां या पाप कर बैठता है। ऐसे में शास्त्रों में इन सभी पापों के प्रायश्चित का भी तरीका बताया गया है। जो व्यक्ति समय रहते हुए अपने पापों का प्रायश्चित कर लेता है, उन्हें जीवन में इन पापों के दुष्प्रभावों को नहीं भोगना पड़ता है। हिंदू धर्म में मूल रूप से पापों की क्षमा भगवान शिव और वरुण देव से मांगी जाती है, क्योंकि क्षमा करने का अधिकार इनके पास ही है।

  • तीर्थ स्थल की यात्रा करना- सनातन धर्म में तीर्थ स्थलों की यात्रा का भी विशेष महत्व है। चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, शक्ति पीठ, अयोध्या, मथुरा, काशी, उज्जैन इन सभी धार्मिक स्थलों को सर्वोच्च तीर्थ में गिना जाता है। जो व्यक्ति जीवन में इन तीर्थ स्थलों की यात्रा करता है, उन्हें देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उक्त बताए गए सभी कर्म एक मनुष्य के जीवन में कई बदलाव लाते हैं और उन कर्मों का पालन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।