Adhik Maas 2020: सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट होता है अधिकमास, जानें कैसे पड़ा पुरुषोत्तम नाम
Adhik Maas 2020 सूर्य की बारह संक्रांति के आधर पर हर वर्ष 12 महीने होते हैं। हर तीन 3 वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का ही एक अतिरिक्त भाग है।
Adhik Maas 2020: सूर्य की बारह संक्रांति के आधर पर हर वर्ष 12 महीने होते हैं। हर तीन 3 वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है। वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का ही एक अतिरिक्त भाग है। यह हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर पर आता है। ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया, यह अधिकमास सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच के अंतर का संतुलन बनाए रखने के लिए आता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार. प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं अगर चंद्र वर्ष की बात करें तो यह 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में करीब 1 मास के बराबर हो ही जाता है। इसे पाटने के लिए हर तीन वर्ष में चंद्र मास अस्तित्व में आता है। इसके अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
क्या होता है अधिकमास:
हमारे सभी व्रत, आस्था मेले, मुहूर्त ग्रहों पर आधारित होते हैं। सूर्य चंद्र के द्वारा हिंदी माह का निर्माण होता है। 30 तिथियों का माह होता है, जिसमें 15 दिनों बाद अमावस्या और 15 दिनों बाद बाद पूर्णिमा होती है। इन माह में पूरे वर्ष ये तिथियां घटती बढ़ती रहती हैं। तीन वर्षों के उपरांत ये घटी-बढ़ी तिथियां एक पूरे माह का निर्माण करती हैं। विशेष यह होता है की इस माह में संक्रांति नहीं होती। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
क्यों पड़ा पुरुषोत्तम मास नाम:
कहा जाता है कि अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु हैं। पुरुषोत्तम इनका ही एक नाम है। अत: अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इसे लेकर एक कथा भी प्रचलित है। मान्यता के मुताबिक, भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि, अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मास पुरुषोत्तम मास बन गया।