Mahesh Navmi 2022: जाने कब है महेश नवमी, भगवान शिव को खुश करने के लिए इन सरल उपायों से करें पूजा अर्चना
Mahesh Navmi 2022 महेश नवमी पर महादेव के विशेष मंत्रों के जाप से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। कुछ ऐसे विशेष मंत्र जिनका महेश नवमी पर रुद्राक्ष की माला से जप करने से सुख धन संपत्ति में बढ़ोत्तरी और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
By Pradeep ChauhanEdited By: Updated: Wed, 01 Jun 2022 10:18 PM (IST)
नई दिल्ली। Mahesh Navmi 2022: इस साल महेश जयंती रवि योग में है। 09 जून को रवि योग पूरे दिन है और किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों के लिए शुभ योग है। दरअसल, महेश नवमी माहेश्वरी समाज का प्रमुख त्यौहार है। देवो के देव महादेव के वरदान से महेश नवमी पर ही माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी।
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी 9 जून को 2022 को महेश नवमी का पर्व मनाया जाएगा।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महेश नवमी पर भगवान शिव का अभिषेक करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस विधि से करें पूजा पाठ
भगवान शिव का एक नाम महेश भी है। महेश जयंती को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर आप भगवान शिव की पूजा करें। शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, सफेद फूल, फल, चंदन, अक्षत्, शक्कर, भस्म, गंगाजल, गाय का दूध आदि अर्पित करें।शुभ मुहुर्त में करें पूजा अर्चना
महेश जयंती के दिन का शुभ समय या अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है। इस दिन का राहुकाल दोपहर में 02 बजकर 05 मिनट से दोपहर 03 बजकर 49 मिनट तक है। महेश नवमी पर महादेव के विशेष मंत्रों के जाप से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। कुछ ऐसे विशेष मंत्र, जिनका महेश नवमी पर रुद्राक्ष की माला से जप करने से सुख, धन संपत्ति में बढ़ोत्तरी और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मंत्रों का जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना शुभ माना जाता है।
इन मंत्रों का करें जाप- ऊं नम: शिवाय- ऊं पार्वतीपतये नम:- ऊं ह्रीं ह्रौं नम: शिवाय- ऊं नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्रां मेधा प्रयच्छ स्वाहा- नमो नीलकण्ठायमहेश जयंती को लेकर ये कथा प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक बार इनके वंशज शिकार करने के लिए जंगल के लिए निकले। वे इस बात से अनजान थे कि जंगल में ऋषि मुनि तपस्या कर रहे थे। ऐसे में शिकार के कारण ऋषि मुनि की तपस्या में विघ्न आ गया और वे नाराज हो गए। उन्होंने शिकारी को गुस्से में वंश समाप्ति का श्राप दे दिया। इसके बाद ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान शिव की विशेष कृपा से इन्हें मुक्ति प्राप्त हुई। उन्होंने जब हिंसा का मार्ग त्याग दिया तब महादेव ने इस समाज को अपना नाम दिया और तब से ही यह समुदाय 'माहेश्वरी' नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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