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Narad Vivah Katha: जानें, क्यों भगवान विष्णु ने नारद जी के विवाह करने के सपने को किया था चकनाचूर ?

Narad Vivah Katha भगवान विष्णु को पूर्व से ही नारद जी के विवाह की जानकारी थी। इसके लिए नारद जी का आदर-सत्कार कर बोले- आपके मन में भी गृहस्थी बसाने की कल्पना है। नारद जी मंद-मंद मुस्कुरा कर बोले- हां प्रभु! बस आप मुझे रूपवान बना दें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 02 May 2023 11:09 AM (IST)
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Narad Vivah Katha: जानें, क्यों भगवान विष्णु ने नारद जी के विवाह करने के सपने को किया था चकनाचूर ?

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Narad Vivah Katha: सनातन धर्म में विवाह को पवित्र कर्म कांड माना गया है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि हनुमान जी को भी ज्ञान प्राप्ति हेतु सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से शादी करनी पड़ी थी। चिरकाल में नारद जी के मन में भी विवाह करने की इच्छा एक बार जागृत हुई थी। हालांकि, जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने माया रचकर नारद जी के सपने को चकनाचूर कर दिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने ऐसा क्यों किया था ? आइए कथा जानते हैं-

क्या है कथा ?

चिरकाल में एक बार नारद जी को अपनी भक्ति पर अभिमान हो गया था। तीनों लोकों में जाकर नारद जी अपनी भक्ति का खुद से गुणगान करते थे। सबसे पहले उन्हें ब्रह्मदेव ने ऐसा करने से मना किया। इसके बाद देवों के देव महादेव ने भी उन्हें खुद की प्रशंसा करने से मना किया था। हालांकि, नाराज जी कहा मानने वाले थे। उनके मन में तो सर्वश्रेष्ठ भक्त का अहंकार आ गया था। जगत के पालनहार विष्णु जी को भी जानकारी मिली कि नारद जी तीनों लोकों में अपनी भक्ति का डंका पीट रहे हैं।

तब भगवान विष्णु ने नारद जी की बड़ी परीक्षा ली। उन्होंने माया के बल पर एक नगर बसाई। एक बार जब नारद जी कैलाश से लौट रहे थे, तो मार्ग में भगवान विष्णु द्वारा रचित माया नगरी को देख आश्चर्यचकित हो गए। तत्क्षण राजा से मिलने नगर पहुंच गए।

नगर के राजा ने उनकी मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं होने दी। इससे नारद जी प्रसन्न हो गए। उसी क्षण राजा ने नारद जी से पुत्री के विवाह हेतु हस्त रेखा देखने की इच्छा जताई। पुत्री का हाथ देख नारद जी बोले- इन्हें तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ वर मिलेगा। यह कहकर नारद जी माया नगर से प्रस्थान कर गए।

हालांकि, मार्ग में उन्हें अनुभूति हुई कि वर्तमान समय में तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ मैं ही हूं, क्योंकि मैं सबसे बड़ा नारायण भक्त हूं और जब सप्तऋषियों ने गृहस्थी बसा ली, तो मुझे विवाह करने में क्या आपत्ति है ? यह सब सोच नारद जी, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे।

भगवान विष्णु को पूर्व से ही नारद जी के विवाह की जानकारी थी। इसके लिए नारद जी का आदर-सत्कार कर बोले- आपके मन में भी गृहस्थी बसाने की कल्पना है। नारद जी मंद-मंद मुस्कुरा कर बोले- हां, प्रभु! बस आप मुझे रूपवान बना दें। मैंने तो अब तो माया को भी जीत लिया है। इसके लिए मुझसे कोई सर्वश्रेष्ठ वर तीनों लोकों में नहीं है।

यह सुन भगवान विष्णु बोले- विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता है। मैं भी उसमें कोई बदलाव नहीं करना चाहता हूं। आपकी इच्छा पूरी हो। यह कहकर भगवान विष्णु ध्यान करने लगे। नारद जी प्रसन्न होकर वैकुण्ठ लोक से विदा हो गए।

इसके पश्चात, स्वयंवर के दिन नारद जी राजा के दरबार पहुंचे। अन्य राजाओं की तरह खुद भी विवाह हेतु पंक्ति में बैठ गए। हालांकि, राजा ने उनकी ओर ध्यान दिया। इसके बाद पुत्री ने विष्णु जी की माया द्वारा रचित राजा के गले में वरमाला डाल दी।

उस समय नारद जी अपनी जगह पर उठते बैठते रहें। विवाह कार्यक्रम संपन्न होने के बाद शिवगण ने नारद जी के उछलने का औचित्य जानना चाहा। यह सुन नारद जी क्रोधित हो उठे। गुस्से में बोले- मुझमें क्या कमी है, तो शिवगण बोले- आप इंसान नहीं, बल्कि बंदर हैं। एक बार अपनी छवि तो देख लें।

यह सुन नारद जी ने अपनी छवि देखी, तो बेहद क्रोधित हो उठे। इसके बाद तुरंत वहां से ब्रह्मलोक की ओर प्रस्थान करने लगे। मार्ग में विष्णु जी रोककर बोले- कहां, जा रहे हैं, नारद जी ? यह सुन नारद जी समझ गए। उस समय उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह पत्नी वियोग में मैं जला हूं। आप भी मृत्यु लोक में अपनी पत्नी के वियोग में तड़पेंगे। वहीं, शिवगण को श्राप दिया कि आप दोनों का जन्म मृत्यु लोक में राक्षस कुल में होगा। हालांकि, नारद जी का अहंकार भी समाप्त हो गया। त्रेता युग में भगवान विष्णु जी ने राम रूप में जन्म लिया था। नारद जी के श्राप की वजह से उन्हें सीता वियोग से गुजरना पड़ा था।

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