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Kalash Puja: पूजा में क्यों रखा जाता है कलश, जानें क्या है इस्तेमाल का तरीका

Kalash Puja कलश को मंगल कलश या मंगल कुम्भ कहा जाता है। भारतीय ज्योतिषिय प्रयोगों में कलश का अपना महत्व है। इसे मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 27 Aug 2020 04:40 PM (IST)
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Kalash Puja: पूजा में क्यों रखा जाता है कलश, जानें क्या है इस्तेमाल का तरीका

Kalash Puja: कलश को मंगल कलश या मंगल कुम्भ कहा जाता है। भारतीय ज्योतिषिय प्रयोगों में कलश का अपना महत्व है। इसे मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। इसके मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में भगवान ब्रह्मा का वास होता है। ज्योतिषाचार्या साक्षी शर्मा से जानते हैं, कलश के मांगलिक प्रयोग जिनसे पूजा का पूरा फल मिले।

सभी देवताओं की प्रसन्नता:

ज्योतिष शास्त्रों में वर्णित है कि मंगल कलश में सभी देवी-देवताओं और तीर्थों का वास होता है। घर की पूजा में रखा जाने वाल कलश संपन्नता का प्रतीक होता है। इसकी स्थापना से सभी देवी देवता प्रसन्न होते है तथा कार्य सिद्ध होने में सहायता मिलती है।

कलश का प्रयोग:

कलश का प्रयोग तमाम तरह के पूजन जैसे- नवरात्रि पूजन, दीपावली पूजन, गृह प्रवेश पूजन, अक्षय तृतीया पूजन आदि में होता है। किसी भी घर में कलश को दो जगहों पर रखना अत्यंत ही शुभ परिणाम देने वाला होता है। इसमें पहला स्थान हमारा पूजा घर और दूसरा मुख्य द्वार है। दोनों ही स्थानों पर रखे जाने वाले कलश में पवित्र नदी का जल डालकर ही रखना चाहिए। यदि आपके पास किसी पवित्र नदी का जल उपलब्ध न हो तो आप ताजा जल लेकर उसमें गंगाजल मिलाकर रखें।

द्वार कलश के लाभ:

घर के बाहर भी कलश रखने का विधि विधान होता है।घर के बाहर रखे जाने वाले कलश का मुंह चौड़ा और खुला होना चाहिए। जिसमें ताजे आम के पत्ते और अशोक के पेड़ की पत्तियां रख सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार ये शुक्र और चंद्र ग्रह का प्रतीक है।आम के पत्तों का संबंध बुध ग्रह से होता है। चूंकि कलश का संबंध संपन्नता से होता है ऐसे में दरवाजे के पास रखा कलश आपके घर में सुख-समृद्धि लेकर आएगा और बाहर से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को रोकने का काम करेगा।

कलश का महात्मय:

पौराणिक कथाओं में कलश की पवित्रता और दिव्यता का उल्लेख मिलता है। जैसे समुद्र मंथन में निकला अमृत कलश जो कि देवताओं और असुरों द्वारा मंदराचल पर्वत से मथने से निकला था। ऋग्वेद में सोम पूरित और अथर्ववेद में घी और अमृत पूरित कलश का वर्णन मिलता है। जीवन से मृत्यु तक कलश अनेक रूप में प्रयोग होता है।

पूजा में प्रयुक्त कलश के नियम-

1. वास्तु के अनुसार पूजा में प्रयोग किए जाने वाले मंगल कलश की स्थापना हमेशा ईशान कोण में की जाती है।

2. शुद्ध जल आदि डालकर विधि-विधान से रखा गया कलश घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।

3. जमीन में कलश को रखने से पहले रोली से अष्टदल कमल बनाएं और उस पर रखें।

4. इसके बाद कलश में कुछ आम के पत्ते और सिक्का डालकर उसके मुख पर पानी वाला नारियल रख दें।

5. इसके बाद कलश देवता का रोली, अक्षत, पुष्प से पूजन करें. कलश पर स्वास्तिक का चिंह बनाएं। कलश के गले पर मोली बांधे।

डिस्क्लेमर-

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है. विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी. ''