पूजा में नारियल और सुपारी का क्यों किया जाता है उपयोग, क्या है इसका महत्व
किसी भी शुभ काम में नारियल फोड़ना बेहद ही शुभ माना जाता है। इसी तरह पूजा में सुपारी का भी विशेष महत्व होता है। जागरण अध्यात्म के इस लेख में आज हम आपको बताएंगे कि पूजा-पाठ में पूजा में नारियल और सुपारी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है।
नारियल को श्रीफल कहा जाता है। इसे बेहद ही शुभ माना गया है। ऐसे में जब भी पूजा-पाठ करते हैं या फिर कोई हवन करते हैं तो अक्सर, नारियल और सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, अगर हम नया वाहन खरीदते हैं और गृह प्रवेश करते हैं तो भी हम सबसे पहले नारियल ही फोड़ते हैं। किसी भी शुभ काम में नारियल फोड़ना बेहद ही शुभ माना जाता है। इसी तरह पूजा में सुपारी का भी विशेष महत्व होता है। जागरण अध्यात्म के इस लेख में आज हम आपको बताएंगे कि पूजा-पाठ में पूजा में नारियल और सुपारी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है।
सबसे पहले बात करते हैं नारियल की। कहा जाता है कि नारियल हमारी सफलता के मार्ग खोल जेता है। अगर लंबे समय से कोई काम नहीं बन रहा हो तो पूजा में नारियल का इस्तेमाल जरूर करें। जिस नारियल को आप पूजा में इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे लाल कपड़े में लपेट दें। आपकी जो भी मनोकामना है उसे व्यक्त करते हुए नारियल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इससे रूके हुए काम सफल होते हैं।
पूजा के समय गणेश जी के प्रतीक के रूप में सुपारी और मां लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में नारियल रखा जाता है। अगर पूजा में नारियल और सुपारी रखी जाए तो बिना किसी परेशानी के कार्य संपन्न हो जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि जिस सुपारी की पूजा की जा रही है अगर उसे अपने पास रखा जाए तो इसका चमत्कारिक प्रभाव होता है। इससे धन की कमी नहीं होती है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि अगर जनेऊ में सुपारी को लपेटकर रखा जाए और पूजा की जाए तो इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जनेऊ में सुपारी को लपेटकर तिजोरी में रखना शुभ होता है।
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'