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Krishna Janmashtami 2023 Katha: जन्माष्टमी पर जरूर करें भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा

Krishna Janmashtami 2023 2023 प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कृष्ण जन्माष्टमी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस विशेष दिन पर उपवास रखने से और भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा का पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 04 Sep 2023 01:29 PM (IST)
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Krishna Janmashtami 2023 जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर पढ़े भगवान श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी कथा।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Krishna Janmashtami 2023 Shri Krishna Janam Katha: हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर भगवान श्री कृष्ण की विधिवत उपासना करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है। साथ ही इस विशेष दिन पर कई भक्तों द्वारा उपवास का पालन किया जाता है। शास्त्रों में यह विदित है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी कथा का पाठ करने से व्यक्ति को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा

भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर अपने अंत की ओर था और कलयुग शुरू होने में कुछ ही समय शेष था। इस समय दैत्यों का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। उस दौरान अत्याचारी राजा कंस मथुरा नगरी पर शासन करता था। कंस ने अपने पिता राजा उग्रसेन को कारगार में बंदी बनाकर सिंहासन को हड़प लिया था। लेकिन वह अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था और उसने अपनी बहन का विवाह अपने मित्र वसुदेव से करा दिया। जब वसुदेव देवकी के साथ अपने राज्य जा रहे थे, तभी आकाशवाणी हुई कि 'कंस! तेरी बहन के गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरे मृत्यु का कारण बनेगी।''

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इस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और उसने वसुदेव की हत्या का प्रयास किया। लेकिन देवकी ने अपने भाई को ऐसा करने से रोक दिया और यह वचन दिया कि जो भी संतान उनके गर्भ से जन्म लेगी, उसे वह कंस को सौंप देगी। कंस ने इस शर्त को मान लिया और दोनों को कारगार में बंदी बना लिया। देवकी ने कारागार में एक-एक कर छह बच्चों को जन्म दिया और कंस ने सभी शिशुओं को निर्ममता से मार डाला। लेकिन सातवें संतान को योगमाया ने संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया, जिन्हें शेषावतार बलराम जी के नाम से पूजा जाता है। यही कारण है कि बलराम जी संकर्षण भी कहा जाता है।

आकाशवाणी के अनुसार, देवकी माता ने आठवें संतान के रूप में भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण को जन्म दिया। भगवान श्री कृष्ण के जन्म होते ही कारागार में भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने वसुदेव जी से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नंद जी के पास ले जाएं और वहां से उनकी कन्या को ले आएं।

आदेशानुसार वसुदेव जी ने बाल गोपाल को एक टोकरी में डालकर अपने सर पर रखा और नंद जी के घर चल पड़े। भगवान विष्णु की माया से कारागार के सभी पहरेदार सो गए और कारगार के द्वार अपने-आप खुलने लगे। जब वसुदेव श्री कृष्ण को लेकर यमुना नदी के तट पर पहुंचे तो यमुना अपने पूरे वेग से बह रही थी, लेकिन प्रभु के लिए यमुना ने भी शांत होकर वसुदेव जी को आगे जाने का मार्ग दिया। वसुदेव सकुशल नंद जी के पास पहुंच गए और वहां से उनकी कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।

जब कंस को आठवें संतान के जन्म की सूचना प्राप्त हुई, तो वह शीघ्र-अतिशीघ्र कारागार पहुंच गया और देवकी से कन्या को छीनकर उसकी हत्या का प्रयास किया। लेकिन तभी उसने कंस के हाथ से निकलकर कहा कि 'मूर्ख कंस! तूझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है। अब तुझे तेरे पापों का दंड जल्द मिलेगा।' वह कन्या योग माया थीं, जो कन्या के रूप में आई थीं।

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