Kuber Dev: धन के देवता कैसे बने कुबेर, स्कंद पुराण में मिलती है रोचक कथा
Kuber Dev कुबेर देव की पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। वहीं घर की उत्तर दिशा में कुबेर देवता का वास माना गया है। ऐसा माना जाता है कि धन के देवता कुबेर की दया दृष्टि जिस किसी पर भी पड़ती है उसे जीवन में आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन कुबेर देवता के धन के देवता बनने के पीछे बड़ी ही रोचक कथा मिलती है।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Mon, 31 Jul 2023 02:12 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Kuber Dev: सनातन धर्म में कुबेर को धन के देवता के रूप में जाना जाता है। धनतेरस के दिन कुबेर देव की पूजा करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन कुबेर देवता की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी आर्थिक संकट उत्पन्न नहीं होता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हें ये उपाधि कैसे मिली? अगर नहीं तो आइए जानते हैं कि कुबेर को धन के देवता की उपाधि क्यों दी जाती है।
कौन हैं कुबेर देवता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई हैं। रावण की मृत्यु के बाद कुबेर को ही असुरों का नया सम्राट बनाया गया। वे यक्षों के राजा भी हैं। वे उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं और लोकपाल भी माने जाते हैं। इनके पिता महर्षि विश्रवा थे और माता देववर्णिणी थीं। इन्हें भगवान शिव का परम भक्त और नौ निधियों का देवता भी कहा गया है। कुबेर के धन के देवता बनाने के पीछे कई किवदंतियां मौजूद हैं। माना जाता है कि वह पिछले जन्म में एक चोर थे।
क्या कहता है स्कंद पुराण
स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि पूर्वजन्म में भगवान कुबेर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था जिसका नाम गुणनिधि था। लेकिन उसमें एक अवगुण था कि वह चोरी करने लगा था। इस बात का पता चलने पर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया। जब भटकते हुए वह एक शिव मंदिर दिखा तो उसने मंदिर से प्रसाद चुराने की योजना बनाई। वहां एक पुजारी सो रहा था। जिससे बचने के लिए गुणनिधि ने दीपक के सामने अपना अंगोछा फैला दिया। लेकिन पुजारी ने उसे चोरी करते हुए पकड़ लिया गया और इसी हाथापाई में उसकी मृत्यु हो गई।मृत्यु के उपरांत जब यमदूत गुणनिधि को लेकर आ रहे थे तो दूसरी ओर से भगवान शिव के दूत भी आ रहे थे। भगवान शिव के दूतों ने गुणनिधि को भोलेनाथ के समक्ष प्रस्तुत किया। भोलेनाथ को यह प्रतीत हुआ कि गुणनिधि ने अंगोछा बिछाके उनके लिए जल रहे दीपक को बुझने से बचाया है। इसी बात से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गुणनिधि को कुबेर की उपाधि प्रदान की। साथ ही देवताओं के धन का खजांची बनने का आशीर्वाद भी दिया।
रामायण में मिलता है कुबेर का वर्णन
रामायण में भी कुबेर देव का वर्णन मिलता है। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में शिव तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बाएं नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चले गए। कुबेर के घोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कहा कुबेर से कहा कि तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षी पिंगल कहलाओंगे।डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'