Lalita Jayanti Vrat Katha: माता ललिता की पूजा करते समय करें व्रत कथा का पाठ,
Lalita Jayanti Vrat Katha हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ललिता जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि आज पड़ी है। इस दिन मां ललिता की पूजा की जाती है और उनकी आरती और मंत्रों का जाप भी किया जाता है।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sat, 27 Feb 2021 07:30 AM (IST)
Lalita Jayanti Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ललिता जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि कल यानी 27 फरवरी को पड़ रही है। इस दिन मां ललिता की पूजा की जाती है। इन्हें दस महाविद्याओं की तीसरी महाविद्या माना जाता है। इनकी पूजा करते समय व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए पढ़ते हैं ललिता जयंती की व्रत कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, मां ललिता का वर्णन देवी पुराण में मिलता है। एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ हो रहा था। इसी दौरान दक्ष प्रजापति भी वहां आए और सभी देवगण उनके स्वागत के लिए खड़े हो गए। लेकिन उनके वहां आने के बाद भी शंकर जी नहीं उठे। दक्ष प्रजापति को यह अपमानजनक लगा। ऐसे में इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने शिवजी को अपने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।जब इस बात का पता माता सती को चला तो वो शंकर जी की अनुमति लिए बिना ही अपने पिता यानी दक्ष प्रजापति के घर पहुंच गईं। वहां, उन्होंने अपने पिता के मुंह से शंकर जी की निंदा सुनी। उन्हें बेहद ही अपमानित महसूस हुआ और उन्होंने उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणों को त्याग दिया। जब इस बात का पता शिव जी को चला तो वह बेहद ही व्याकुल हो उठे। उन्होंने मां सती के शव को कंधे पर उठाया और उन्मत भाव से इधर-उधर घूमना शुरु कर दिया।
विश्व की पूरी व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई। ऐसे में विवश हो शिवजी ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर गए। उनके अंग जहां-जहां गिरे वह उन्हीं आकृतियों में उन स्थानों पर विराजमान हुईं। यह उनके शक्तिपीठ स्थल के नाम से विख्यात हुए।नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा। नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है। यहां लिंग स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। साथ ही यहां ललिता देवी की पूजा भी की जाती है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं। इन्हें ही ललिता देवी के नाम से जाना जाता है।