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कौन से हैं नवग्रह और क्‍या हैं उनकी विशेषतायें, पुरुषोत्तम मास में बढ़ जाता है महत्‍व

हिंदू धर्म में नवग्रहों का अत्‍याधिक महत्‍व है उनके बिना कोई पूजा पाठ और कर्मकांड सम्‍पन्‍न नहीं होता। आइये जाने उनकी कुछ विशेषताओं के बारे में।

By Molly SethEdited By: Updated: Tue, 29 May 2018 04:38 PM (IST)
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कौन से हैं नवग्रह और क्‍या हैं उनकी विशेषतायें, पुरुषोत्तम मास में बढ़ जाता है महत्‍व
नवग्रहों का है महत्‍व 

पंडित दीपक पांडे का कहना है कि हिंदु धर्म के अनुसार भारतीय ज्‍योतिष में नवग्रह में से हरेक का अपना महत्‍व होता है। विज्ञान के तहत भी ग्रहों का प्रभाव संजीव और निर्जीव पर पड़ने की बात कही गई है जैसे चंद्रमा के आकार के साथ ही समुद्र में ज्‍वार भाटा आता है। इसी तरह कहते हैं कि प्राण निकलने के बाद भी मनुष्‍य के नाखून और बाल बढ़ते अक्‍सर देखे जाते हैं उसका कारण भी ग्रह होते हैं। 

मलमास का प्रभाव 

इस समय पुरुषोत्तम मास चल रहा है इसके चलते ग्रहों का महत्‍व और भी बढ़ जाता है। इस अवधि के आने वाले 13 दिन ग्रहों के हिसाम से अत्‍यंत लाभदायक प्रभाव डालने वाले होंगे। इस काल में ग्रहों की पूजा करने और दान पुण्‍य करने से प्रत्‍येक राशि के लोगों के कष्‍ट दूर हो सकते हैं। 

ये हैं नौ ग्रह

सूर्य- प्रथम ग्रह हैं सूर्य जिन्‍हें ग्रहों का मुखिया माना जाता है। मलमास में प्रात काल सूर्य को जल चढ़ा कर आदित्‍य मंत्र आदित्यहृदयम का जाप करने से पुण्‍य प्राप्‍त होता है।  

चंद्र- चन्द्र एक देवता हैं, इनको सोम के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें वैदिक चंद्र देवता सोम के साथ पहचाना जाता है। उन्हें जवान, सुंदर, गौर, द्विबाहु के रूप में वर्णित किया जाता है। 

मंगल- लाल ग्रह या मंगल को भी देवता मानते हैं। मंगल ग्रह को संस्कृत में अंगारक भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है जो लाल रंग का हो। इन्‍हें भौम यानि 'भूमि का पुत्र' भी कहते हैं। ये युद्ध के देवता हैं और ब्रह्मचारी हैं। इन्हें पृथ्वी, की संतान माना जाता है  और ये वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी हैं। 

बुध- बुध, चन्द्रमा और बृहस्‍पति की पत्‍नी तारा के पुत्र हैं। चंद्रमा के तारा को बलात संबंध बना कर गर्भवती करने से उत्‍पन्‍न बुध रजो गुण  वाले हैं। उन्हें शांत, सुवक्ता और हरे रंग में प्रस्तुत किया जाता है। उनके हाथों में एक कृपाण, एक मुगदर और एक ढाल होती है।

बृहस्‍पति- बृहस्पति, देवताओं के गुरु हैं, शील और धर्म के अवतार हैं, प्रार्थनाओं और बलिदानों के मुख्य प्रस्तावक हैं, जिन्हें देवताओं के पुरोहित के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वे पीले या सुनहरे रंग के हैं और एक छड़ी, एक कमल और अपनी माला धारण करते हैं।

शुक्र- शुक्र भृगु और उशान के बेटे का नाम है और वे दैत्यों के शिक्षक और असुरों के गुरु हैं। प्रकृति से वे राजसी हैं और धन, खुशी और प्रजनन का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शनि-  शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य खगोलीय ग्रहों में से एक है। इसकी प्रकृति तमस है और कठिन मार्गीय शिक्षण, करियर और दीर्घायु को दर्शाता है। सूर्य और छाया के पुत्र हैं। कहा जाता है कि जब उन्होंने शिशु के रूप में पहली बार अपनी आंखें खोली, तो सूरज ग्रहण में चला गया, जिससे ज्योतिष चार्ट यानि कुंडली पर शनि के प्रभाव का साफ़ संकेत मिलता है। उन्‍हें काले रंग में, काला लिबास पहने, एक तलवार, तीर और दो खंजर लिए हुए, एक काले कौए पर सवार दिखाया जाता है। 

राहु- ये आरोही, उत्तर चंद्र आसंधि के देवता हैं। ये राक्षसी सांप का मुखिया है जो हिन्दू शास्त्रों के अनुसार सूर्य या चंद्रमा को निगलते हुए ग्रहण को उत्पन्न करता है। इसका कोई सर नहीं है और ये आठ काले घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार तमस असुर है।

केतु-  केतु अवरोही, दक्षिण चंद्र आसंधि का देवता है। केतु को आम तौर पर एक "छाया" ग्रह के रूप में जाना जाता है। उसे राक्षस सांप की पूंछ के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि मानव जीवन पर इसका एक जबरदस्त प्रभाव पड़ता है और पूरी सृष्टि पर भी। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह किसी को भी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचने में मदद करता है, और प्रकृति में तमस है।