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Lord Hanuman: शनि दोष का होगा निवारण, ऐसे करें संकटमोचन हनुमान जी की पूजा

Panchmukhi Hanuman Kavach Importance रामभक्त हनुमान जी की पूजा के लिए मंगलवार का दिन समर्पित है। अगर आप साढ़े साती जैसे बड़े संकट से परेशान हैं तो आपके लिए वीर हनुमान जी (Lord Hanuman) की पूजा बेहद लाभकारी है। ऐसे में साधक को संकटमोचन की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए। इसके अलावा पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ करना चाहिए जो इस प्रकार है-

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Tue, 07 Nov 2023 07:00 AM (IST)
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पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ ऐसे करें

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Panchmukhi Hanuman Kavach: मंगलवार का दिन रामभक्त हनुमान जी को समर्पित है। इस दिन संकटमोचन की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो साधक मंगलवार के दिन वीर हनुमान जी (Lord Hanuman) की पूजा विधि अनुसार करते हैं, उनके जीवन से बड़े संकटों का अंत तुरंत हो जाता है। साथ ही कुंडली से शनि दोष का प्रभाव भी कम हो जाता है।

इसलिए जो लोग साढ़े साती से परेशान हैं, या फिर ऐसी परेशानी से जूझ रहे हैं, जिनका समाधान मुश्किल है, तो उन्हें 7 मंगलवार पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही चमेली के तेल का दीया हनुमान मंदिर में जलाना चाहिए। ऐसा करने से उनकी सभी मुश्किलों का समाधान क्षण भर में हो जाएगा।

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॥पंचमुखी हनुमान कवच॥

॥श्री गरुड उवाच ॥

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर।

यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम्।।

महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्|

बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्।।

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्।

दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्।।

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्।

अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम्।।

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्।

सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्।।

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्।

पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्।।

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्।

येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम्।।

जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्।

ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्।।

खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम्।

मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम्।।

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्।

एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्।।

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्।

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।।

सर्वाश्‍चर्यमयं देवं हनुमद्विश्‍वतो मुखम्।

पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं।।

शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्।

पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं

पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि।।

मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।

शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर।।

ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले|

यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता।।

हनुमान स्त्रोत

''अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् . सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं. रघुपतिप्रियभक्तं वातात्मजं नमामि. यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम. वाष्पवारिपरिपूर्णालोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्''

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