Lord Kartikeya Story: कार्तिकेय कहलाते हैं देवताओं के सेनापति, इसलिए मिली थी ये उपाधि
कार्तिकेय जी को दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन स्कंद और सुब्रमण्यम के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में जब राजा युद्ध के लिए जाते थे तो वह भगवान कार्तिकेय की ही पूजा करते थे। लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं। अगर नहीं तो चलिए जानते हैं कार्तिकेय जी के देवताओं के सेनापति बनने की कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव और माता पार्वती के दो पुत्रों का वर्णन मिलता हैं, जिनमें से एक हैं गणेश जी और दूसरे कार्तिकेय। हम सभी गणेश जी के जन्म की कथा और उनसे संबंधित कथाएं तो जानते हैं ही। लेकिन भगवान कार्तिकेय के बारे में कम ही लोगों को पता होगा। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि कार्तिकेय जी को देवताओं के सेनापति क्यों कहा जाता है।
चारों तरफ फैला तारकासुर का आतंक
कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता द्वारा शिव जी का अपमान सुना, तो उन्होंने अग्निकुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए। माता सती के जाने के बाद से ही महादेव तपस्या में लीन रहने लगे। राक्षस तारकासुर को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो सकती है। इस दौरान एक तारकासुर ने यह सोचकर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया कि शिव जी तो तपस्या में लीन रहते हैं, ऐसे में उनका पुत्र कैसे उत्पन्न होगा। इससे सभी देवता परेशान हो गए और तारकासुर के अंत के लिए कोई युक्ति सोचने लगे।
कामदेव ने भंग की शिव जी की तपस्या
तब देवताओं ने सोचा कि किस तरह शिव जी से पार्वती का विवाह कराया जाए। दूसरी ओर पार्वती, शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। तब देवताओं के कहने पर कामदेव ने शिव जी की तपस्या भंग करने का प्रयास किया, जिस कारण शिव जी के क्रोध से कामदेव भस्म हो गए।
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इस तरह हुआ कार्तिकेय का जन्म
लेकिन कामदेव का यह त्याग व्यर्थ नहीं गया। तपस्या से बाहर आने के बाद शंकर जी सभी देवताओं की बात सुनते हैं। लेकिन पार्वती के साथ विवाह करने से पहले वह उनकी परीक्षा लेते हैं, जिसमें पार्वती जी सफल हो जाती हैं। इसके बाद शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हुआ और इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय तारकासुर का वध करते हैं और सभी देवताओं के अनुरोध पर कार्तिकेय जी देवताओं के सेनापति पद को स्वीकार करते हैं। तभी से कार्तिकेय जी को देवताओं के सेनापति के रूप में पूजा जाता है।
यह भी पढ़ें -अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।