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Lord Krishna: इन 16 कलाओं में निपुण थे भगवान श्रीकृष्ण, जानिए इनका महत्व

Lord Krishna भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का ही अवतार हैं। उन्होंने प्रजा को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण में यह 16 कलाएं पाई जाती हैं इसलिए वह सर्वज्ञानी और ब्रह्माण्ड के ज्ञानी कहलाते हैं। क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण की यह 16 कलाएं कौन-सी हैं।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 29 Jul 2023 02:59 PM (IST)
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Lord Krishna भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं कौन-सी हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म। Lord Krishna: भगवान विष्‍णु के सभी अवतारों में से कृष्‍ण जी को सर्वश्रेष्‍ठ माना गया है। इसका कारण हैं उनकी 16 कलाएं। वहीं, भगवान विष्‍णु के अवतार भगवान राम 12 कलाओं का ज्ञान रखते थे। आइए जानते हैं कि भगवान श्री की वह सोलह कलाएं कौन-सी हैं।

क्या होती हैं कलाएं

कला का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो यह विशेष प्रकार का गुण मानी जाती हैं। इन कलाओं के द्वारा ही व्यक्ति अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होता है। माना जाता है कि सामान्य व्यक्ति में अधिकत्तम 5 कलाएं होती हैं। वहीं श्रेष्ठ मनुष्य में ज्यादा-से-ज्यादा आठ कलाएं होती हैं।

ये हैं भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं

1. श्री धन संपदा- इस कला का अर्थ केवल धन-संपदा होने से नहीं है। बल्कि व्यक्ति के पास आध्यात्मिक संपदा भी होनी चाहिए। व्यक्ति मन, कर्म और वचन से भी धनी होना चाहिए। इस कला से सपन्न व्यक्ति के घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता। इसका उत्कृष उदाहरण भगवान श्रीकृष्ण हैं। उन्होंने अपने परम मित्र सुदामा को धन-धान्य से समपन्न कर दिया था।

2. भू संपत्ति- जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है वह भू संपदा कला से पूर्ण कहलाएगां। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी इसी कला के चलते द्वारका का राज-पाठ संभाला था।

3. कीर्ति संपदा- कीर्ति यानि की ख्याति, प्रसिद्धि अर्थात जो देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो। लोगों के बीच लोकप्रिय हो और विश्वसनीय माना जाता हो। जन कल्याण कार्यों में हमेशा आगे रहता हो। यह सभी गुण भगवान श्रीकृष्ण में मौजूद हैं इसलिए वह कीर्ति संपदा कला से संपन्न माने जाते हैं।

4. वाणी की सम्मोहकता- जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है वह व्यक्ति जो अपनी वाणी से सभी का दिल जीत ले वह वाणी सम्मोहन कला से परिपूर्ण कहलाता है। भगवान श्री कृष्ण अपनी इसी कला के कारण सबका मन मोह लेते हैं इसलिए उन्हें मोहन भी कहा जाता है।

5. लीला की कला- लीला वह कला है जिसमें दर्शन मात्र से ही आनंद की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन में कई प्रकार की लीलाएं की हैं।

6. कांति - इस कला में व्यक्ति के चेहरे पर एक ऐसी कांति होती है जिससे चेहरे से नजरे हटाने का मन नहीं करता। जिससे देखने मात्र से आप सुध-बुध खोकर उसके हो जाते हैं। यानि उनके रूप सौंदर्य से आप प्रभावित होते हैं।

7. विद्या- सभी प्रकार की विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे वेद-वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं। भगवान श्री कृष्ण इस कला से भी सम्पन्न थे।

8. विमला- इस कला का अर्थ है कि जिस व्यक्ति के मन में छल-कपट न हो और वह सभी के लिए निष्पक्ष भाव रखता हो।

9. उत्कर्षिणि शक्ति- उत्कर्षिणि शक्ति से पात्पर्य है कि जिसमें लोगों को प्रेरित करने की क्षमता हो, जो लोगों को उनका लक्ष्य पाने के लिए प्रोत्साहित कर सकें। इस कला का उदहारण भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत की युद्धभूमि में अर्जुन को प्रेरित करके दिया था।

10. नीर-क्षीर विवेक – ऐसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता है। विवेकशील तो होता ही है साथ ही वह अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग सुझाने में भी सक्षम होता है। भगवान श्री कृष्ण में यह कला पाई जाती है।

11. क्रिया कर्मण्यता- इस कला से तात्पर्य है कि जो व्यक्ति सिर्फ उपदेश देने में ही नहीं बल्कि स्वयं भी कर्मठ होता है। जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है।

12. योगशक्ति- योग को भी एक कला माना गया है। साधारण शब्दों में योग का अर्थ है जोड़ना। यहां पर इसका आध्यात्मिक अर्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिए भी किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण इस कला से भी निपुण हैं।

13. विनय - विनय का अर्थ है विनयशीलता, अर्थात जो अहंकार भाव से दूर होते हैं भले ही वह सर्वज्ञानी हों, सर्वशक्तिमान हो। यह गुण भी भगवान श्री कृष्ण में पाया जाता है।

14. सत्य धारणा- यह कला उन लोगों में पाई जाती है जो कठिन परिस्थियों में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ते। इस कला से संपन्न व्यक्ति को सत्यवादी भी कहा जाता है। इस कला से सपन्न लोग कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करते।

15. आधिपत्य- ऐसा व्यक्ति जो जोर-जबरदस्ती से किसी पर अपना आधिपत्य न जमाए, बल्कि लोग स्वयं उसे अपना स्वामी मान लें। जिनके आधिपत्य में सुरक्षा और संरक्षण मिले।

16. अनुग्रह क्षमता- जिस व्यक्ति में अनुग्रह की क्षमता होती है वह हमेशा दूसरों के कल्याण में लगा रहता है। परोपकार के कार्यों को करता रहता है। उनके पास जो भी सहायता के लिए पंहुचता वह अपने सामर्थ्यानुसार उस व्यक्ति की सहायता करते हैं।

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