Devi Rukmini Vivah Katha: बिना देखे ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान बैठी थीं देवी रुक्मिणी, ऐसे हुआ था कान्हा संग उनका विवाह
देवी रुक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। एक समय की बात है जब पिता भीष्मक अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर की तलाश कर रहे थे। उस दौरान उनसे मिलने कोई भी शख्स आता तो वो श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की बखान करता जिसे सुनकर देवी रुक्मिणी ने उन्हें मन ही मन में अपना पति (Devi Rukmini Vivah Katha) मान लिया था।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Krishna And Devi Rukmini Vivah Katha: जब हम प्रेम की परिभाषा के बारे में बात करते हैं, तो हमारे जहन में सिर्फ एक ही तस्वीर नजर आती है, जो है भगवान श्रीकृष्ण की। कान्हा ने प्रेम को अलग-अलग रूप में परिभाषित किया है। कभी मित्र बनकर, तो कभी सखा, प्रेमी व पति बनकर। उनका प्यार हर रूप में ही अनोखा और दिव्य था।
ऐसे में आज हम उनकी धर्मपत्नी देवी रुक्मिणी के प्रति उनके प्रेम का जिक्र करेंगे, कि कैसे उन्होंने अनेकों विपदाओं का सामना कर एक- दूसरे से विवाह किया था ? आइए जानते हैं -
देवी रुक्मिणी कौन थीं?
देवी रुक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। वे अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान थीं। एक समय की बात है जब पिता भीष्मक अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर की तलाश कर रहे थे। उस दौरान उनसे मिलने कोई भी शख्स आता, तो वो श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की बखान करता, जिसे सुनकर देवी रुक्मिणी ने उन्हें मन ही मन में अपना पति मान लिया था।
देवी रुक्मिणी का श्रीकृष्ण को पत्र
देवी रुक्मिणी के भाई रुक्म का परम मित्र चेदिराज शिशुपाल उनसे विवाह करना चाहता था। पुत्र के कहने पर राजा भीष्मक ने शिशुपाल संग अपनी लाडली पुत्री का विवाह तय कर दिया था, लेकिन रुक्मिणी जी इस विवाह से खुश नहीं थीं, जिसके चलते उन्होंने संदेश के जरिए श्रीकृष्ण तक अपनी बात पहुंचाई। जैसे ही यह बात मुरलीधर तक पहुंची, वे तुरंत विदर्भ राज्य पहुंच गए।ऐसे हुआ था श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी का विवाह
शिशुपाल संग विवाह से पहले कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और पापी शिशुपाल व रुक्म के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें द्वारकाधीश विजयी हुए। फिर वे देवी रुक्मिणी को द्वारका ले आएं और उन्होंने भव्य तरीके से विवाह किया। साथ ही सदैव के लिए एक हो गए।
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