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Lord Krishna: गांधारी का ये श्राप बना श्री कृष्ण की मृत्यु का कारण, यदुवंश का भी हो गया सर्वनाश

महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाए थे लेकिन फिर भी युद्ध में उनकी अहम भूमिका रही। युद्ध में वह अर्जुन के सारथी बनकर उसका मार्गदर्शन करते रहे। लेकिन इस भीषण युद्ध के कारण उन्हें श्राप का सामना भी करना पड़ा। इसी कारण उन्होंने अपना मानव शरीर त्यागना पड़ा। चलिए जानते हैं कि वह श्राप क्या था।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Wed, 03 Jul 2024 03:19 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2024 03:19 PM (IST)
Lord Krishna: गांधारी से भगवान कृष्ण को मिला था ये श्राप। (Picture Credit: Freepik)

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण को प्रभु श्री हरि का 8वां अवतार माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में कई लीलाएं की हैं। क्या आप जानते हैं कि महाभारत के दौरान भगवान कृष्ण को भी एक श्राप मिला था, जो न केवल उनकी मृत्यु का कारण बना, बल्कि यदुवंश के नाश का कारण भी बना।

युद्ध का हुआ ये परिणाम

धर्म और अधर्म के बीच हुए महाभारत के युद्ध में जहां एक तरह कौरव सेना थी, तो वहीं दूसरी तरफ पांडवों की सेना थी। 18 दिनों तक चले   भीषण युद्ध में पांडवों की जीत हुई और कौरवों को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि इसमें गांधारी और धृतराष्ट्र के सभी 100 पुत्रों की मृत्यु हो गई। इस भीषण युद्ध के लिए गांधारी ने श्री कृष्ण को दोषी ठहराया, क्योंकि वह जानती थी कि श्री कृष्ण चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे।

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मिला था ये श्राप

गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया था कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा और तुम भी अधिक समय तक इस धरती पर जीवित नहीं रह सकोगे। इस श्राप के अनुसार ही यादव वंश के सभी लोग आपस में लड़कर मर गए। इस घटना बाद एक दिन भगवान श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे योग समाधि ले रहे थे।

इसी दौरान एक जरा नाम का एक शिकारी वहां आ गया। जरा ने कृष्ण जी के हिलते हुए पैर को हिरण समझा और तीर चला दिया। वह तीर भगवान कृष्ण के पैर के तालू में जा लगा। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ को चले गए।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


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