Lord Parshuram: भगवान परशुराम ने 21 बार क्यों किया धरती को क्षत्रिय विहीन, जानिए पौराणिक कथा
भगवान परशुराम जी का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है। वह 8 चिरंजीवियों में से एक हैं। परशुराम जी बहुत ही तेजस्वी ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष थे। भगवान परशुराम के डर से उनके शत्रु उनसे थर-थर कांपते थे।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 17 Jun 2023 01:03 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Lord Parshuram: भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना गया हैं। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और हमेशा तप में लीन रहते थे। उनकी भक्ति को देखकर स्वयं महादेव ने उन्हें अमरता का वरदान प्रदान किया था।
कैसे पड़ा परशुराम नाम
महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार, परशुराम जी का मूल नाम राम था। किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। उनके स्वभाव की बात करें तो उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था। क्षत्रियों के प्रति अपने क्रोध के चलते ही उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।
कौन था सहस्त्रार्जुन
भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में छठवां अवतार, मदांध सहस्त्रबाहु को सबक सिखाने के लिए लिया था। सहस्त्रबाहु का वास्तविक नाम अर्जुन था। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय को अपनी तपस्या द्वारा प्रसन्न करके उनसे 10,000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसके बाद से ही उन्हें सहस्त्रार्जुन के नाम से जाना जाने लगा। उसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनसे शक्तिशाली रावण को भी हराया था। सहस्त्रार्जुन ने अपने घमंड में चूर होकर धर्म की सभी सीमाओं को लांघ दिया। उसके अत्याचारों से जनता त्रस्त हो चुकी थी। वह वेद-पुराण और धार्मिक ग्रंथों को मिथ्या बताकर ब्राह्मण का अपमान करता था। ऋषियों के आश्रम को नष्ट करता, उनका अकारण वध करता। यहां तक कि उसने मदिरा के नशे में चूर होकर स्त्रियों के सतीत्व को भी नष्ट करना शुरू कर दिया था।भगवान परशुराम ने क्यों किया सहस्त्रार्जुन का वध
एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों से होता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। महर्षि जमदग्नि ने भी उसका खूब स्वागत सत्कार किया। ऋषि जमदग्नि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक चमत्कारी गाय थी। सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की मांग की, लेकिन ऋषि ने गाय देने से इनकार कर दिया। इसपर सहस्त्रार्जुन ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने लगा, लेकिन तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई। इसके बाद जब भगवान परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तो अपने आश्रम को तहस-नहस देखकर क्रोध में आ गए और उन्होंने उसी वक्त सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम भगवान शिव द्वारा दिए महाशक्तिशाली फरसे को साथ प्रचण्ड बल से सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु (फरसा) से काटकर कर उसका वध कर दिया।
इस कारण किया क्षत्रिय वंश का नाश
सहस्त्रार्जुन के वध के बाद परशुराम अपने पिता ऋषि जमदग्नि के आदेशानुसार प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर चले गए। लेकिन, तभी मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्नि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनका वध कर दिया। सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों का भी वध करते हुए, आश्रम को जला दिया। तभी माता रेणुका ने सहायता के लिए अपने पुत्र परशुराम को पुकारा। जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो उन्होंने पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे। यह देखकर परशुराम क्रोधित हो उठे। उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही नहीं बल्कि समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। उन्होंने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया था, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'