Bhagwan Shiv: कैसे उत्पन्न हुआ भगवान शिव का तीसरा नेत्र? इसके खुलने पर क्या होगा
देखा जाए तो सभी देवताओं में शिव जी का स्वरूप सबसे निराला है। जहां अन्य देवी-देवता गहनों आदि से सुशोभित रहते हैं वहीं रुद्राक्ष और भस्म ही शिव जी का शृंगार है। भगवान शिव की तीसरी आंख उनके ललाट पर स्थित है जो मुख्य रूप से बंद अवस्था में ही रहती है। चलिए जानते हैं कि शिव जी की तीसरी आंख के खुलने पर क्या परिणाम मिल सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Shiva third eye: देवाधिदेव कहलाने वाले भगवान महादेव, हिंदू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक माने गए हैं। भगवान शिव जी जुड़ी हर एक चीज एक खास संदेश देती है, चाहे वह शिव जी के गले का नाग हो या फिर जटाओं से निकलने वाली गंगा। इसी प्रकार शिव जी के तीन नेत्र भी हैं, जिस कारण उन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। चलिए जानते हैं कि महादेव किस प्रकार त्रिनेत्रधारी बने।
महादेव कैसे बने त्रिनेत्रधारी
भगवान शिव की तीसरी आंख से जुड़ी कथा महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में मिलती है। इसके अनुसार, एक बार हिमालय पर्वत पर भगवान शिव समस्त देवी-देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानी लोगों के साथ सभा कर रहे थे। तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने उपहास के तौर पर शिव जी की दोनों आंखों पर अपने हाथ रखकर उन्हें बंद कर दिया। जैसे ही माता पार्वती ने शिव जी की आंखें ढकी समस्त पृथ्वी पर अंधेरा छा गया। इससे धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में हाहाकार मच गया।
तभी महादेव ने अपने माथे पर आंख के रूप में एक ज्योतिपुंज प्रकट किया। जिससे पूरी सृष्टि में पुनःप्रकाश छा गया। तब उन्होंने माता पार्वती से इसका कारण पूछने पर बताया कि मेरी आंखें जगत की पालनहार हैं। ऐसे में यदि वह बंद हो जाएं तो पूरी सृष्टि का विनाश हो सकता है। यही कारण है कि पूरे संसार की रक्षा के लिए शिव जी ने तीसरी आंख प्रकट की।
क्या है इसका अर्थ
शिवजी के तीनों नेत्र अलग-अलग गुणों के प्रतीक माने गए हैं। महादेव के दांए नेत्र को सत्वगुण और बांए नेत्र को रजोगुण का वास माना गया है। तो वहीं तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है। कहा जाता है कि भगवान शिव की दो आंखें भौतिक जगत की सक्रियता पर नजर रखती हैं, तो वहीं तीसरी आंख का कार्य है पापियों पर नजर रखना। यह आंख इस बात की ओर संकेत करती है कि समस्त विश्व का न तो आदि है और न ही अंत।हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान शिव के तीनों नेत्र को त्रिकाल यानी भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक माना गया है। वहीं, स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक भी इन्हीं तीनों नेत्रों के प्रतीक माने गए हैं। यही कारण है कि शिव जी को तीनों लोकों का स्वामी कहा गया है।यह भी पढ़ें - Ravi Pradosh Vrat 2024: प्रदोष काल में इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा, यहां जानिए व्रत का सही नियम