Maa Kalaratri Katha: कौन हैं मां कालरात्रि, जानें क्यों लिया था दुर्गा मां ने यह अवतार
Maa Kalaratri Katha आज नवरात्रि का सातवां दिन है। आज के दिन मां के सातवें यानी कालरात्रि अवतार की आराधना की जाती है। मां कालरात्रि अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। साथ ही दुष्टों को और असुरों को मारने वाली हैं। मां स्वशक्ति संधान करने वाली हैं।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 23 Oct 2020 06:25 AM (IST)
Maa Kalaratri Katha: आज नवरात्रि का सातवां दिन है। आज के दिन मां के सातवें यानी कालरात्रि अवतार की आराधना की जाती है। मां कालरात्रि अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। साथ ही दुष्टों को और असुरों को मारने वाली हैं। मां स्वशक्ति संधान करने वाली हैं। मां का शरीर घने अंधकार की तरह है। मां के सिर के बाल बिखरे हुए हैं। इनकी सवारी गदर्भ है। मां कालरात्रि अंधकारमय स्थितियों का विनाश करती हैं। मां अपने भक्तों की रक्षा काल से करते हैं। मां के तीन नेत्र हैं। तीनों ही नेत्र ब्रह्माण की तरह हैं यानी गोल।
मां अपने ऊपर वाले दायीं हाथ से भक्तों को वरदान देती हैं। वहीं, दायीं तरफ का ही नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। मां का बाईं तरफ वाले ऊपर के हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग मौजूद है। मां का रूप भयंकर है। मां हमेशा ही शुभ फल देती हैं। इसी के चलते मां कालरात्रि को शुभंकरी कहा जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नाम का एक दानव था जिसने देवों और आम लोगों को बहुत परेशान कर रखा था। रक्तबीज को वरदान प्राप्त था कि अगर उसके खून की एक बूंद भी जमीन पर गिरी तो उसके जैसा एक और पैदा हो जाएगा। इसी वरदान के चलते उसे कोई मार नहीं पा रहा था। सभी परेशान देवगण शिवजी के पास पहुंचे और शिवजी को यह ज्ञात था कि केवल देवी पार्वती ही उसे खत्म कर सकती हैं। अत: उन्होंने देवी से अनुरोध किया कि वो रक्तबीज का वध करें। फिर मां ने स्वयं शक्ति संधान किया। मां का चेहरा बेहद भयानक हो गया। वह एक हाथ से रक्तबीज पर प्रहार कर रही थीं तो दूसरे हाथ में एक मिट्टी के पात्र खप्पर से झेल लेतीं और रक्त को जमीन पर गिरने नहीं देतीं। इस तरह मां का यह रूप कालरात्रि कहलाया।
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