माँ दुर्गा की पाँचवी शक्ति को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है
माँ दुर्गा की पाँचवी शक्ति को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के पाँचवे दिन माता स्कन्द की आराधना व पूजन का विधान है।
माँ दुर्गा की पाँचवी शक्ति को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के पाँचवे दिन माता स्कन्द की आराधना व पूजन का विधान है। भगवान स्कन्द की माता होने के कारण ही इन देवी को स्कन्दमाता कहा जाता है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण आदि शक्ति स्कन्दमाता की मनोहर छवि दिव्यशक्ति के समान पूरे ब्रह्माण्ड में देदीप्यमान हो रही है। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। भगवान स्कन्द बाल रूप में इन देवी के गोद में बैठे हैं। ये स्कन्द देवताओं की सेना के सेनापति हैं। देवी स्कन्दमाता सिंह पर पद्म के आसन पर विराजमान हैं।
माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमें जीवन के कठिन समय में भी आशा व विश्वास के साथ जीवन को सफल बनाने की राह दिखाता है। यह हमारे जीवन में बाधक कुसंस्कारों का समूल नाश करके हमें नैतिक रूप से सबल बनाता है। माँ के कल्याणकारी स्वरूप का ध्यान हमें स्वयं पर नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करके हममें सकारात्मक दृष्टिकोण की अभिवृद्धि करता है। यह हमें संस्कारमय व पवित्र जीवन जीने की राह दिखाता है। माँ के ज्योतिर्मयी स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर सतत पुरूषार्थ व क्रियाशीलता की भावना जागृत करके हमारी मानसिक व आत्मिक वृश्रियों को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाता है।
यह हमें सृजनात्मक कार्यों में उद्यत करके हमारी अनियंत्रित महत्वाकांक्षाओं व क्रोध आदि दुर्गुणों का शमन करने की शक्ति प्रदान करता है।माँ के देदीप्यमान स्वरूप का ध्यान हमारी मेधा को श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृश्र करके हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करता है। यह हममें विवेक, प्रज्ञा जैसी दैवीय संपदा का अभिवर्धन करके हमें लक्ष्य व ध्येय की प्राप्ति में निर्बाध रूप चलते रहने की सामथ्र्य प्रदान करता है।
ध्यान मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित होता है।
- पं अजय कुमार द्विवेदी