Mahabharat Abhimanyu Vadh: मां के गर्भ में सीखा था चक्रव्यूह तोड़ना, जानें कैसे हुआ था शूरवीर अभिमन्यु का वध
Mahabharat Abhimanyu Vadh महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। जहां कौरव धोखा देने और छल कपट में अव्वल थे। वहीं पांडव धर्म की ओर से लड़ रहे थे।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 28 Oct 2020 10:38 AM (IST)
Mahabharat Abhimanyu Vadh: महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। जहां कौरव धोखा देने और छल कपट में अव्वल थे। वहीं, पांडव धर्म की ओर से लड़ रहे थे। कौरवों ने पांडवों को हराने के लिए छल की रणनीति बनाई। कौरव चाहते थे कि वो युधिष्ठिर को बंदी बनाकर युद्ध जीत लें जिसके लिए उन्होंने सोचा कि वो अर्जुन को युद्ध में उलझाकर चारों भाइयों से दूर ले जाएंगे और फिर युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे।
इस रणनीति को अंजाम देते हुए कौरव सेना की एक टुकड़ी ने अर्जुन से युद्ध किया और वो उसे रणभूमि से दूर ले गए। वहीं, गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना क। यह चक्रव्यूह कैसे तोड़ना है इसकी जानकारी केवल पांडवों को थी। जैसे ही अर्जुन रणभूमि से दूर गया वैसे ही द्रोणाचार्य ने पांडवों को ललकारा। उन्होंने कहा कि या तो युद्ध करो या फिर हाल मान लो। लेकिन नियमों के तहत लड़ना आवश्यक था। पांडवों ने सोचा कि अगर वो युद्ध नहीं करेंगे तो भी हारेंगे और युद्ध करेंगे तो भी हारेंगे। यह देख धर्मराज युधिष्ठिर को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
इस कशमकश के दौरान धर्मराज युधिष्ठिर के सामने एक युवक आया और उसने कहा कि काकाश्री, मुझे चक्रव्यूह को तोड़ने और युद्ध करने का आशीर्वाद दीजिए। यह और कोई नहीं बल्कि अभिमन्यु था, अर्जुन का पुत्र। अभिमन्यु की उम्र 16 वर्ष की ही थी। लेकिन वह अपने पिता की तरह युद्ध कौशल में निपुण थे। लेकिन युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को मना कर दिया। लेकिन अभिमन्यु नहीं माना। उसने कहा कि जब वो अपनी मां के गर्भ में था तब उसके पिता ने उसे चक्रव्यूह तोड़ना सिखाया था। अभिमन्यु ने कहा कि उसे चक्रव्यूह तोड़ना आता है। मैं आगे रहूंगा और आप सब मेरे पीछे-पीछे आइए।
अभिमन्यु के सामने युधिष्ठिर ने हार मान ली। सभी युद्ध के लिए तैयार हो गए। जब कौरवों ने अभिमन्यु को रणक्षेत्र में देखा तो वो सभी उसका मजाक उड़ाने लगे। लेकिन जब अभिमन्यु का युद्ध कौशल सभी ने देखा तो सभी हैरान परेशान हो गए। अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण को मार गिराया और चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया। जैसे ही अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया तो राजा जयद्रथ ने उसका द्वार बंद कर दिया।
अभिमन्यु दृढ़ता से आगे बढ़ रहा था। ता जा रहा था। अभिमन्यु ने एक-एक कर सभी को मार गिराया। दुर्योधन, कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य को अभिमन्यु से हार माननी पड़ी। इसी बीच कौरवों के सभी महारथियों ने अभिमन्यु पर एकसाथ हमला कर दिया। किसी ने अभिमन्यु का रथ तोड़ दिया तो किसी ने इसका धनुष। लेकिन दृढ़ अभिमन्यु रुका नहीं। उसने रथ का पहिया उठाया और युद्ध करना शुरू कर दिया। अभिमन्यु अकेला लड़ता रहा। लेकिन कब तक। आखिरी में सभी ने मिलकर अभिमन्यु की हत्या कर दी। जब अर्जुन को यह बात पता चली तो अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा ली। आज कर्ण और अर्जुन से भी पहले शूरवीर अभिमन्यु का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
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