Mahabharat Katha: सत्यवती की सुंदरता पर मोहित हो गए थे ऋषि पराशर, दिया था ये वरदान
सत्यवती महाभारत (Mahabharat Katha) की एक महत्वपूर्ण कड़ी है क्योंकि सत्यवती से अपने पिता के विवाह के लिए गंगा पुत्र देवव्रत ने जीवन भर विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी जिस कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया। बहुत कम हो लोग यह जानते होंगे कि महर्षि वेदव्यास का भी सत्यवती से बहुत संबंध रहा है। चलिए जानते हैं इस विषय में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत काल में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जिनका महाभारत के युद्ध से भी कोई-न-कोई संबंध रहा है। शांतनु की तरह ही पराशर ऋषि भी सत्यवती की सुंदरता पर मोहित हो गए थे, जिसके चलते उन्होंने सत्यवती को वरदान भी दिया था। यह भी महाभारत काल की एक महत्वपूर्ण घटना रही है, क्योंकि अगर यह घटना न हुई होती, तो आज महाभारत का स्वरूप कुछ और होता।
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि पराशर एक विद्वान और सिद्ध ऋषि थे। एक दिन धीवर नामक एक मछुआरे की नाव पर बैठकर नदी पार कर रहे थे, तभी उनकी नजर मछुआरे की पुत्री सत्यवती पर पड़ी, जो उसी नाव पर मौजूद थी। सत्यवती की सुंदरता को देखकर ऋषि पराशर उन पर मोहित हो गए और उन्होंने सत्यवती को अपने मन की बात बताई। इसपर सत्यवती ने कहा कि में मछुआरे की पुत्री हूं और आप एक सिद्ध ऋषि हैं, ऐसे में हमारा मिलन अनैतिक होगा।
दिए इतने वरदान
सत्यवती की चिंता को भांपते हुए पराशर ऋषि ने उस स्थान पर एक कृत्रिम आवरण तैयार कर दिया, जिससे वहां उन दोनों को कोई नहीं देख सकता था। साथ ही उन्होंने सत्यवती को यह वरदान दिया कि संतान उत्पन्न करने के बाद भी तुम्हारी कौमार्यता प्रभावित नहीं होगी। इसी के साथ मछुआरों के साथ रहने के कारण सत्यवती के शरीर से हमेशा मछली की दुर्गंध आती थी, जिस कारण उसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता था। ऐसे में पराशर ऋषि ने सत्यवती को यह वरदान भी दिया कि अब उसकी यह दुर्गंध एक अत्यंत मोहक सुगंध में बदल जाएगी।
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उत्पन्न हुई संतान
सत्यवती और ऋषि पाराशर की एक संतान भी उत्पन्न हुई, जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा गया। आगे चलकर यही महर्षि वेदव्यास बने, जो आज महाभारत के रचयिता के रूप में जाने जाते हैं। वहीं आगे चलकर महर्षि वेदव्यास ही धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के जन्म का कारण बने, जो महाभारत की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।यह भी पढ़ें - Hassanamba Temple: वर्ष में दीवाली पर ही खुलता है ये मंदिर, साल भर जलता रहता है दीया
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