Mahabharat: भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को जुआ खेलने से क्यों नहीं रोका? यह थी असल वजह
महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिससे पढ़कर व्यक्त को यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में किन गलतियों को नहीं करना चाहिए। यह भीषण युद्ध एक ही वंश के कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई और कौरवों को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में भगवान श्री ने भी अहम भूमिका निभाई थी।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Mahabharat story: कहते हैं कि महाभारत का युद्ध इतना भयावह था कि आज भी युद्ध क्षेत्र की मिट्टी लाल रंग की है। इस युद्ध में हजारों लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। साथ ही यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध का परिणाम पता था। लेकिन उन्होंने फिर भी युद्ध की असल वजह यानी द्यूतक्रीड़ा (जुए का खेल) को नहीं रोका। चलिए जानते हैं इसका कारण क्या था।
यहां मिलता है वर्णन
उद्धव गीता या उद्धव भागवत में है वर्णन मिलता है कि दुर्योधन के उकसाए जाने पर द्यूतक्रीड़ा खेलने का निर्णय धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा लिया गया था। श्री कृष्ण पांडवों के इष्ट होने के साथ-साथ सलाहकार भी थे, लेकिन इस विषय में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की कोई सलाह नहीं ली थी। साथ ही इस ग्रंथ में यह भी वर्णन मिलता है कि द्यूत क्रीड़ा यानी जुए के खेल के लिए विवेक की आवश्यकता होती है, जो उस समय दुर्योधन के पास तो था, लेकिन युधिष्ठिर के पास नहीं। यही कारण है कि जुए में पांडवों को हार का सामना करना पड़ा था।
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से लिया था वचन
जब जुआ खेलने की बात चल रही थी, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से यह वचन लिया था कि वह बिना बुलाए सभा में न आएं। क्योंकि पांडव जानते थे कि यह एक बुरा खेल है और भगवान श्रीकृष्ण इसमें उनका साथ नहीं देंगे। लेकिन जब चीरहरण के दौरान द्रौपदी द्वारा बचाव के लिए भगवान श्री कृष्ण को पुकारा गया तो वह अप्रत्यक्ष रूप से उसकी रक्षा के लिए सभा में आए।
यह भी पढ़ें - Neelkantheshwar Temple: इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से दूर होता है शत्रु भय, समुद्र मंथन से जुड़ा है कनेक्शन
यह था असल कारण
भगवान श्री कृष्ण अंतर्यामी हैं, और वह महाभारत युद्ध के परिणाम को भी भलीभांति जानते थे। लेकिन अगर वह पांडवों को जुआ खेलने से रोकते, तो उनके द्वापर युग में अवतरित होने का लक्ष्य अधूरा रह जाता। महाभारत युद्ध का असल मकसद अधर्मियों का नाश कर पुनः धर्म की स्थापना करना था।
यह भी पढ़ें - Nageshwar Jyotirlinga: कैसे हुई नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना? अर्पित किए जाते हैं धातु से बने नाग-नागिनअस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।