Move to Jagran APP

Mahabharat: कुंती को मिले इस वरदान से हुआ पांडवों का जन्म, जानिए किस देवता की संतान हैं कौन-सा पांडव

महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिससे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को अपने जीवन में किन गलतियों को करने से बचना चाहिए। महाभारत का भीषण युद्ध मुख्य रूप से कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में पांडव धर्म की रक्षा के लिए लड़े। इस युद्ध में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 18 Jun 2024 03:55 PM (IST)
Hero Image
Pandava Story कुंती को मिले इस वरदान से हुआ पांडवों का जन्म।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत में वर्णित 5 पांडव पांडु की संतान के रूप में जाने जाता हैं। कौरवों की उत्पत्ति के साथ-साथ पांडवों की उत्पत्ति को लेकर भी एक बड़ी ही रोचक कथा मिलती है। असल में इन पांचों का जन्म कुंती को मिले एक वरदान के कारण हुआ था। ये पांचों देव पुत्र माने जाते हैं। तो चलिए जानते हैं कि कौन-सा पांडव (Pandava Story) किस देवता की संतान हैं।

मिला था ये वरदान

एक बार ऋषि दुर्वासा, कुंती की सेवा से बहुत प्रसन्न होते हैं। तब वह कुंती को एक मंत्र देते हुए कहते हैं कि इस मंत्र के जाप द्वारा तुम जिस भी देवता का आवाहन करोगी, तुम्हें उसी देव पुत्र की प्राप्ति होगी। बाद में कुंती ने इस वरदान का इस्तेमाल कर पुत्रों की प्राप्ति की, क्योंकि पांडु को यह श्राप मिला था कि जब तुम पत्नी को छुओगे, तो तत्काल तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।

इस तरह अस्तित्व में आए पांडव

दुर्वासा ऋषि से मिले वरदान की सहायता है से कुंती ने सर्वप्रथम यम यानी धर्म के देवता का आह्वान किया, जिससे उन्हें युधिष्ठिर की प्राप्ति हुई। इसी प्रकार भीमसेन पवन देव के अंश थे। कुंती को अर्जुन की प्राप्ति देवराज इंद्र से हुई थी। संतान प्राप्ति का मंत्र कुंती ने पांडु की दूसरी पत्नी माद्री को भी दिया। जिसकी सहायता से उसने 2 अश्विनीकुमारों नासत्य और दस्त्र का आवाहन किया, जिससे उसे नकुल और सहदेव पुत्र के रूप में दिए। इस प्रकार पांचों पांडवों का जन्म हुआ।

यह भी पढ़ें - God Shiva: विष पान के बाद भगवान शिव ने इस स्थान पर किया था हजारों साल तप, नीलकंठ मंदिर से जुड़ा है कनेक्शन

कैसे हुआ कर्ण का जन्म

हांलांकि कर्ण पांच पांडवों में शामिल नहीं था। लेकिन वह कुंती का सबसे बड़ा पुत्र था। जब कुंती को दुर्वासा ऋषि से वरदान मिलता है, उसने परीक्षण करने के लिए सूर्य देव का आवाहन किया। इसके परिणामस्वरूप सूर्य देव प्रकट हुए और उनसे कवच-कुंडल धारी कर्ण की उत्पत्ति हुई। क्योंकि यह पुत्र कुंती को विवाह से पहले प्राप्त हुआ था, इसलिए उसने लोकलाज के डर से इस बालक को एक संदूक में रखकर नदी में बहा दिया, जो आगे चलकर कर्ण के रूप में जाना गया।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।