Mahabharat: द्रौपदी का चीरहरण देखकर भी क्यों चुप रहे भीष्म पितामह, बाण शय्या पर लेटे हुए दिया इसका उत्तर
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि महाभारत का युद्ध इतिहास के सबसे भीषण युद्धों में से एक रहा है। भीष्म पितामह महाभारत युद्ध के सबसे विद्वान और शक्तिशाली योद्धाओं में से एक है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने द्रौपदी के चीरहरण जैसी निंदनीय घटना पर कुछ नहीं कहा। जिसका कारण उन्होंने बाण शय्या पर लेटे हुए बताया।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में ऐसी कई कथाओं का वर्णन मिलता है, जो मानव मात्र को प्रेरणा देने का काम भी करते हैं। महाभारत भी इन्हीं ग्रंथों में से एक है। महाभारत का युद्ध होने के पीछे द्रौपदी के चीरहरण की घटना एक मुख्य कारण थी और उससे भी बड़ा कारण इसपर बड़े-बड़े विद्वानों का चुप रहना था।
अर्जुन ने की बाणों की बरसात
भीष्म पितामह जानते थे कि इस युद्ध में पांडव धर्म के लिए युद्ध लड़ रहे हैं, वहीं कौरव अधर्म का साथ दे रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी अपने कर्तव्य से बंधे होने के कारण भीष्म पितामह को रणभूमि में कौरवों का साथ देना पड़ा। युद्ध के दौरान अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाणों की बरसात कर उन्हें बाण शय्या पर लेटा दिया था।
इच्छामृत्यु का वरदान
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिए अत्यंत पीड़ा के बाद भी उन्होंने प्राण त्यागने के लिए 58 दिनों का इंतजार किया। बाण शय्या पर लेटे हुए भी भीष्म पितामह ने पांडवों को कई मूल्यवान बातें बताई थीं। जब भीष्म पितामह बाण शय्या पर लेटे हुए थे, तब द्रौपदी भी उनसे मिलने पहुची।
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दिया यह उत्तर
इस दौरान द्रौपदी ने भीष्म पितामह से यह प्रश्न किया कि आखिर क्यों वह चीरहरण जैसे कृत्य पर भी चुप रहे और उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। तब भीष्म पितामह ने आत्मग्लानि के भरकर उत्तर देते हुए कहा कि मैं जानता था कि मुझे एक दिन इस प्रश्न का उत्तर देना पड़ेगा। आगे उन्होंने कहा कि व्यक्ति जैसा अन्न खाता है, उसका मन भी वैसा ही हो जाता है। जब मेरी आंखों के सामने चीरहरण जैसा अधर्म हो रहा था, तब भी मैं उसे नहीं रोक पाया। क्योंकि मेने दुर्योधन का अन्न खाया था, जिस कारण मेरा मन और मस्तिष्क उसी के अधीन हो गया था।
यह भी पढ़ें - Mahabharat: क्या आप भी द्रोपदी को मानते हैं महाभारत की वजह, यह भी रहे हैं कारणअस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।