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Mahabharat: क्या आप भी द्रोपदी को मानते हैं महाभारत की वजह, यह भी रहे हैं कारण

महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जो हर व्यक्ति को यह सलाह देता है कि जीवन में उसे कौन-से कार्य नहीं करने चाहिए। अन्यथा उसे भी भयंकर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। भीषण युद्ध एक ही वंश के कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। इस युद्ध के पीछे कई कारण रहे हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 06 Aug 2024 02:13 PM (IST)
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Mahabharat Yudd story: महाभारत युद्ध के कारण।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत का युद्ध भारतीय इतिहास के सबसे भीषण युद्धों में से एक माना जाता है। कई लोगों का यह मानना है कि महाभारत का असल कारण यह था कि द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कह दिया था, जिस कारण दुर्योधन के मन में प्रतिशोध लेने की भावना उत्पन्न हुई। लेकिन असल में इसके अलावा भी इस युद्ध के और भी कारण रहे हैं, आइए जानते हैं उनके बारे में।

इन लोगों का रहा बड़ा हाथ

महाभारत का युद्ध होने का एक कारण धृतराष्ट्र का अपने पुत्र के प्रति अंध प्रेम भी रहा। राजा धृतराष्ट्र पुत्र मोह में इस कदर डूब गए थे कि उन्हें सही-गलत के बीच अंतर भी नहीं नजर आया। वह शुरू से ही दुर्योधन की गलतियों को नजरअंदाज करते रहे। जिस कारण दुर्योधन का अहंकार और गलत करने की प्रवृत्ति बढ़ती रही। इससे सबसे बड़ा हाथ दुर्योधन के मामा शकुनि का भी रहा। वह हमेशा दुर्योधन को पांडवों के साथ अन्याय करने की सलाह देते रहे।

पांडवों की गलती पड़ी भारी

पांडवों का कौरवों द्वारा द्यूतक्रीड़ा (जुए का खेल) का प्रस्ताव मानना उनकी पहली बड़ी गलती थी। इसके बाद खेल में द्रौपदी को दांव पर लगाना पांडवों की दूसरी सबसे बड़ी गलती रही। द्यूतक्रीड़ा भी महाभारत युद्ध का एक मुख्य कारण रही। न यह खेल होता और न ही द्रौपदी का चीरहरण होता। जिस कारण युद्ध होने की संभावना और भी बढ़ गई।

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दुर्योधन ने किया श्रीकृष्ण का अपमान

कौरवों की महत्वाकांक्षाएं बहुत ही बढ़ गई थीं और वह अकेले ही हस्तिनापुर का सारा राजपाट हड़प लेना चाहते थे। द्यूतक्रीड़ा होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के शांति दूत बनकर दुर्योधन के पास पहुंचे और उन्होंने पांडवों के लिए केवल पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन दुर्योधन ने घमंड में आकर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भगवान श्रीकृष्ण का अपमान भी किया। यदि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते तो युद्ध को टाला जा सकता था। लेकिन दुर्योधन ने पांडवों को एक सुई के बराबर भी भूमि देने से इंकार कर दिया था और यह भी महाभारत के भीषण युद्ध का एक कारण बना।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।