Mahakal Temple: दो माह बंद रहेगा महाकाल मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश, जानें- अब कैसे करेंगे भक्त जलाभिषेक
श्रावण मास शुरू होते ही शिव मंदिरों में बम बम भोले के जयकारे लगने लगते हैं। श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व बताया गया है। शिव जी कांवड़ उठाने वाले की हर मनोकामना शीघ्र पूरी करते हैं।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Tue, 13 Jun 2023 11:28 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Mahakal Temple: उज्जैन के श्री महाकालेश्वर भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। महाकाल मंदिर में श्रावण मास के दौरान दो माह गर्भगृह में प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा। भक्तों को गणेश व कार्तिकेय मंडपम से ही भगवान महाकाल के दर्शन करने होंगे। प्रतिबंध के दौरान केवल अतिविशिष्ट को ही गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। देशभर से आने वाले कांवड़ यात्रियों के लिए मंदिर समिति द्वारा जलाभिषेक की विशेष व्यवस्था की जाएगी। आम भक्त भी महाकाल का जलाभिषेक कर सकेंगे। इसके लिए समिति द्वारा जल पात्र लगाए जा रहे हैं।
इस बार श्रावण मास में क्या है खास
पंचांग के अनुसार 4 जुलाई से श्रावण मास की शुरुआत होने जा रही है। इस बार श्रावण मास की विशेष बात यह है कि जहां हर वर्ष सावन 30 दिनों का होता है वहीं इस बार सावन 59 दिनों का होगा। 19 वर्षों के बाद श्रावण अधिकमास के रूप में आ रहा है। इस बार पूरे आठ सावन सोमवार का व्रत रखे जाएगें।
श्रावण मास में जल अर्पण का महत्व
श्रावण मास में शिव को जल अर्पण करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। इसी कारण से भारी संख्या में कांवड़ यात्री व आम भक्त यहां पहुंचते हैं। उनके लिए बाहर से जल चढ़ाने की व्यवस्था की जाएगी।जानें गर्भगृह में प्रवेश के नियम
महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने वाले के लिए कुछ नियम तय किए गए हैं। जिनका पालन करना जरूरी है। यहां प्रवेश करने वाले महिलाओं के लिए साड़ी और पुरुषों के लिए धोती पहनना अनिवार्य है। ये नियम बरसों से चला आ रहा है। वहीं मंगलवार से शुक्रवार तक भीड़ कम होने पर दोपहर एक बजे से शाम चार बजे तक आम श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति होती है। हालांकि इस दौरान भक्तों के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं होता। लेकिन शनिवार, रविवार और सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ काफी ज्यादा होती है।
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